विकिपुस्तक hiwikibooks https://hi.wikibooks.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 MediaWiki 1.44.0-wmf.6 first-letter मीडिया विशेष वार्ता सदस्य सदस्य वार्ता विकिपुस्तक विकिपुस्तक वार्ता चित्र चित्र वार्ता मीडियाविकि मीडियाविकि वार्ता साँचा साँचा वार्ता सहायता सहायता वार्ता श्रेणी श्रेणी वार्ता रसोई रसोई वार्ता विषय विषय चर्चा TimedText TimedText talk मॉड्यूल मॉड्यूल वार्ता कक्षा चौथी का गणित/संख्या लेखन 0 10946 81692 80016 2024-12-11T16:24:54Z Mulkh Singh 12753 81692 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=|Curr=संख्या लेखन|Next=डिज़ाइन ही डिज़ाइन}} हज़ारों वर्ष बीत गए हैं जिस समय की बात मैं आपको सुना रहा हूँ। बुलबुल को बहुत जोर की भूख लगी हुई थी। वह खाने की तलाश में अमरूद के पौधे पर आ कर बैठ गई और लगी कच्चे अमरूदों पर चोंच मारने। जितने अमरूद उसने खाए उस से कहीं अधिक बर्बाद किए और नीचे फेंक दिए। अमरूद के पौधे से यह बर्बादी सहन न हुई। उसने बुलबुल को कहा, "अरी बुलबुल ! तुम्हारे और तोते में कोई फ़र्क है? वह भी खाता कम है और बर्बाद अधिक करता है और तू भी वही कुछ करती है।" बुलबुल चिढ़ कर बोली, "तू कितना मूर्ख है, मुझे तोते के साथ मिला दिया। वह कहाँ मैं कहाँ !" अमरूद के पौधे ने पूछा, "वह कैसे?" "मैंने फल तो पेट भरने के लिए खाने ही हैं, परन्तु साथ आपको मीठे -मीठे गीत भी तो सुनाती हूँ," बुलबुल बोली। अमरूद के पौधे ने कुछ देर सोचा और कहने लगा, "तेरी बात तो ठीक है, परन्तु अगर तू केवल पक्के फल ही खाए तो यह तुम्हारे लिए भी आसान होगा और मुझे भी दर्द कम से कम होगा, यों भी पक्के फलों ने तो गिरना ही है।" बुलबुल को यह बात जँच गई और वह खुशी-खुशी मान गई। उस के बाद वह पके हुए फल ही खाने लगी और जब भूख मिट जाती फिर वह एक ठूंगा भी फल पर न मारती। अमरूद के पौधे ने एक दिन प्रातःकाल हवा के साथ झूमते हुए, सारी बात पास खड़े अनार के पौधे को बताई। दोनों बातें कर ही रहे थे कि इतने में एक लड़का वहाँ आया और डंडे के साथ अमरूद गिराने लगा। उसने कच्चे, अर्ध-पक्के और पक्के कितने ही अमरूद गिरा दिए। फिर उनमें से उसने जो अच्छे लगे उठा लिए और बाकी वहीं पड़े रहने दिए और अपना काम करके वहाँ से चला गया। उस लड़के के जाने के बाद अनार का पौधा बड़े दुखी मन से बोला, "अमरूद यार ! बात तो तेरी ठीक है, परन्तु यह मनुष्य पता नहीं कब यह बात समझेगा?" अनार की यह बात सुनकर पास खड़े दूसरे पौधे और उन पर बैठे पक्षी सोच में डूब गए। gqqxy14p6gjiei8j6ukyu7bjhdwf88f कक्षा चौथी का गणित/गुल्लक 0 10952 81683 81682 2024-12-11T15:37:14Z Mulkh Singh 12753 81683 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=पहाड़े और बँटवारे|Curr=गुल्लक|Next=आधा, तिहाई और चौथाई}} आज की कहानी है शेखचिल्ली के बारे ........ ...........शेखचिल्ली के बारे में यही कहा जाता है कि उसका जन्म किसी गांव में एक गरीब शेख परिवार में हुआ था। पिता बचपन में ही गुजर गए थे, मां ने पाल-पोस कर बड़ा किया। मां सोचती थी कि एक दिन बेटा बड़ा होकर कमाएगा तो गरीबी दूर होगी। उसने बेटे को पढ़ने के लिए मदरसे में दाखिला दिला दिया। सब बच्चे उसे ‘शेख’ कहा करते थे। मौलवी साहब ने पढ़ाया, लड़का है तो ‘खाता’ है और लड़की है तो ‘खाती’ है । जैसे रहमान जा रहा है, रजिया जा रही है। एक दिन एक लड़की कुएं में गिर पड़ी। वह मदद के लिए चिल्ला रही थी। शेख दौड़कर साथियों के पास आया और बोला वह मदद के लिए चिल्ली रही है। पहले तो लड़के समझे नहीं। फिर शेखचिल्ली उन्हें कुएं पर ले गया। उन्होंने लड़की को बाहर निकाला। वह रो रही थी। शेख बार-बार समझा रहा था- ‘देखो, कैसे चिल्ली रही है। ठीक हो जाएगी। किसी ने पूछा- ‘शेख! तू बार-बार इससे ‘चिल्ली-चिल्ली क्यों कह रहा है? शेख बोला- ‘लड़की है तो ‘चिल्ली’ ही तो कहेंगे। लड़का होता तो कहता चिल्ला मत। लड़कों ने शेख की मूर्खता समझ ली और उसे ‘चिल्ली-चिल्ली’ कहकर चिढ़ाने लगे। उसका तो फिर नाम ही ‘शेखचिल्ली हो गया। असल बात फिर भी शेख चिल्ली की समझ में न आई। न ही उसने नाम बदलने का बुरा माना। =='''<big>बाजार</big>'''== [[चित्र:Abergavenny_Market_Hall_-_geograph.org.uk_-_5008212.jpg|अंगूठाकार|बाजार में चीजों की खरीद बेच ]] दुनिया में रहने वाले लोग अपने जीवन की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए चीजें खरीदते व बेचते हैं। जहाँ चीजों का लेनदेन होता है, चीजें खरीदी-बेची जातीं हैं। उसे बाजार कहते हैं। एक कविता है- मुर्गी माँ घर से निकली, झोला ले बाजार चली। बच्चे बोले चें चें चें, अम्मा हम भी साथ चलें। [[चित्र:Stables_Market_-_geograph.org.uk_-_3981409.jpg|अंगूठाकार|बाजार]] ==='''<big>कहाँ-कहाँ तक फैला है बाजार</big>'''=== पुराने ज़माने में लोग अपनी वस्तुओं को दूसरों की वस्तुओं से बदल कर अपनी जरूरतों को पूरा कर लिया करते थे जैसे किसी को पहनने के लिए जूता चाहिए तो वह जूते के बदले में अनाज दे देता था। किसी और को नमक चाहिए तो नमक के बदले आलू दे सकता था। यह परंपरागत बाजार था। धीरे-धीरे चीजों का मूल्य निर्धारित हुआ और वस्तुओं की खरीद-बेच सिक्कों के ज़रिए होने लगी। [[चित्र:Indian_Rs10_coin_2005version_obverse.png|अंगूठाकार|भारत का 10 रुपये का सिक्का]] सिक्कों का रूप बदल कर नोट बन गए। [[चित्र:India_new_20_INR,_MG_series,_2019,_obverse.jpg|अंगूठाकार|भारत का 20 रुपये का नोट]] आजकल चीजें डिजीटल करंसी से भी खरीदी-बेची जाती हैं। बाजार हमारे चारों तरफ है। पास की दुकान से लेकर शॉपिंग मॉल तक, छोटी मंडी से लेकर महानगर तक। अगर कोई अपने घर की बेल पर उगे घीया-कद्दू बेचता है तो वहाँ भी बाजार है, अगर कोई अपने घर में रखी बकरी का दूध बेचता है तो वहाँ भी बाजार है। आजकल बहुत से लोग मोबाइल फोन व कंप्यूटर द्वारा ऑनलाइन शॉपिंग (खरीददारी) करते हैं। वह भी बाजार का नया रूप है। आजकल यह नया बाजार खूब बढ़ रहा है और परंपरागत बाजार सिमट रहा है। == मुद्रा का रूप- रुपये और पैसे == * मुद्रा का मतलब है पैसे या धन का वह रूप है जिससे दैनिक जीवन में खरीदारी और बिक्री होती है। इसमें सिक्के और कागज़ के नोट शामिल हैं। अलग-अलग देशों की मुद्रा अलग-अलग है। * भारत में रुपया और पैसा मुद्रा है। * अमेरिका की मुद्रा डॉलर है।[[चित्र:1_US_Dollar_Note_D85_2891_by_Trisorn_Triboon.jpg|अंगूठाकार|1 अमेरिकन डॉलर का नोट]] * रूस की मुद्रा रूबल है।[[चित्र:200_PMR_2004_ruble_obverse.jpg|अंगूठाकार|200 रूबल का नोट]] * जापान की मुद्रा येन है। * कनाडा की डॉलर है। ==चलो करें बाजार की सैर== चलो हम पहले बाजार में चलते हैं। हमारी एक दोस्त है पूजा। हम उसी के साथ बाजार जाएंगे। पूजा की माँ ने उसे 500 रुपये दिए और किरयाना स्टोर से सामान लेने के लिए भेजा। सामान खरीदने पर दुकानदार ने पूजा को यह बिल दिया। [[चित्र:Young_vendor_in_a_grocery_store_in_Don_Som_(2).jpg|अंगूठाकार|छोटा दुकानदार]] {| class="wikitable" |+बिल संख्या 24 दिनांक 7 दिसंबर 2024 |+संजू किरयाना स्टोर, कालांवाली |+ग्राहक का नाम व पता - पूजा, गांव असीर !क्रम !'''वस्तु का नाम''' !रेट !खरीदी गई मात्रा !रकम |- |1 |चावल |60 रुपये प्रति किलोग्राम |2 किलोग्राम |120 रुपये |- |2 |हल्दी |20 रुपये प्रति 100 ग्राम |100 ग्राम |20 रुपये |- |3 |दाल |90 रुपये प्रति किलोग्राम |1 किलोग्राम |90 रुपये |- |4 |नमक |15 रुपये प्रति किलोग्राम |2 किलोग्राम |30 रुपये |- |5 |चीनी |30 रुपये प्रति किलोग्राम |3 किलोग्राम |90 रुपये |- | | | |कुल रकम = |340 रुपये |} दुकान से वापिस आते समय हम बात करते हैं कि - * सबसे अधिक रुपये की कौन सी चीज आई? बिल देखने पर पता चलता है कि वह वस्तु है चावल । * पूजा ने कुल कितने रुपये का सामान खरीदा? बिल के नीचे जोड़ लगा हुआ है 340 रुपये का। * पूजा ने दुकानदार को पाँच सौ रुपये दिए। दुकानदार ने उसे कितने रुपये वापिस किए? 500-340 =160 रुपये आज हम दोबारा बाजार में चलते हैं। रवि एक दोस्त है प्रीत। हम उसी के साथ बाजार जाएंगे। प्रीत के पापा ने उसे 200 रुपये दिए और सब्जी लेने के लिए भेजा। सब्जी खरीदने पर दुकानदार ने प्रीत को यह बिल दिया। [[चित्र:Vegetable_shop.JPG|अंगूठाकार|Vegetable shop]] {| class="wikitable" |+बिल संख्या 120 दिनांक 8 दिसंबर 2024 |+पारवती देवी सब्जी वाली, कालांवाली |+ग्राहक का नाम व पता - प्रीत, गांव असीर !क्रम !'''वस्तु का नाम''' !रेट !खरीदी गई मात्रा !रकम |- |1 |गाजर |20 रुपये प्रति किलोग्राम |2 किलोग्राम |40 रुपये |- |2 |आलू |35 रुपये प्रति किलोग्राम |1 किलोग्राम |35 रुपये |- |3 |प्याज |15 रुपये प्रति किलोग्राम |2 किलोग्राम |30 रुपये |- |4 |गोभी |25 रुपये प्रति किलोग्राम |2 किलोग्राम |50 रुपये |- |5 |अरबी |30 रुपये प्रति किलोग्राम |1 किलोग्राम |30 रुपये |- | | | |कुल रकम = |185 रुपये |} दुकान से वापिस आते समय हम बात करते हैं कि - * सबसे अधिक रुपये की कौन सी चीज आई? बिल देखने पर पता चलता है कि वह वस्तु है ..............। * प्रीत ने कुल कितने रुपये का सामान खरीदा? बिल के नीचे जोड़ लगा हुआ है ........... रुपये का। * प्रीत ने दुकानदार को दो सौ रुपये दिए। दुकानदार ने उसे कितने रुपये वापिस किए? ==उपभोग और व्यापार== बाजार से दो तरह के लोग चीजें खरीदते हैं। जो लोग अपने इस्तेमाल के लिए या खाने-पीने के लिए चीजें खरीदते हैं उसे उपभोग (Consumption) कहते हैं। आशीष का परिवार खेत में रहता है। वह अपनी सब्जियाँ खुद पैदा करता है और गेहूँ भी। पर उसके पापा आशीष को साथ लेकर कसबे में लगने वाले रविवार बाजार में जाते हैं। वहां से वे नमक और कुछ कपड़े आदि लाते हैं जिसे घर में इस्तेमाल करते हैं। इस इस्तेमाल को उपभोग कहा जाता है। [[चित्र:A_trio_eating_fruits_and_beaming_with_smiles.jpg|अंगूठाकार|उपभोग]] कुछ और लोग चीजों को आगे बेचने के लिए खरीदते हैं। वे खुद उनका उपभोग नहीं करते पर दूसरे लोगों को बेच देते हैं। इस काम को व्यापार ( Trade) कहा जाता है। गुरकृपाल सिंह का परिवार गांव में रहता है। वह अपने खाने-पीने की कुछ चीजें खुद पैदा करता है। पर उसकी मम्मी गुरकृपाल सिंह को साथ लेकर कसबे में बाजार में जाती हैं। वहां से वे खिलौने लाते हैं जिसे गाँव आकर दूसरे लोगों को बेच देते हैं। इससे उन्हें कुछ कमाई हो जाती है। इस काम को व्यापार कहा जाता है। [[चित्र:Revendeuse_au_nouveau_marché_de_Blitta.jpg|अंगूठाकार|व्यापार]] व्यापार का मनोरथ लाभ कमाना होता है। लाभ का मतलब होता है- चीजों को जितनी राशि में खरीदा जाए, उससे अधिक में बेचा जाए। जो रकम बचे, उसे लाभ कहते हैं। कई बार चीजों को उनके खरीद मूल्य से कम मूल्य में भी बेचना पड़ सकता है। इससे जो नुकसान होता है, उसे हानि कहते हैं। === लाभ और हानि === पहले इस अध्याय में हम लाभ और हानि के बारे में पढ़ेंगे। * किसी वस्तु को खरीदने के लिए खर्च किया गया धन उस वस्तु का '''क्रय मूल्य (Cost Price)''' कहलाता है। * किसी वस्तु को बेचने से प्राप्त धन उस वस्तु का '''विक्रय मूल्य (Selling Price)''' कहलाता है। * यदि विक्रय मूल्य, क्रय मूल्य से अधिक हो तो उनका अंतर '''लाभ (Profit)''' कहलाता है। '''लाभ = विक्रय मूल्य - क्रय मूल्य''' * यदि विक्रय मूल्य, क्रय मूल्य से कम हो तो उनका अंतर '''हानि (Loss)''' कहलाता है। '''हानि = क्रय मूल्य - विक्रय मूल्य''' उदाहरणः 1 एक दुकानदार ने एक सिलाई मशीन 1450 रुपये में खरीदी और 1525 रुपये में बेच दी। दुकानदार को कितना लाभ या हानि हुई? हलः सिलाई मशीन का क्रय मूल्य = 1450 रुपये सिलाई मशीन का विक्रय मूल्य = 1525 रुपये [[चित्र:Vesta_sewing_machine_IMGP0718.jpg|सिलाई मशीन|thumb]] क्योंकि विक्रय मूल्य, क्रय मूल्य से अधिक है, इसलिए दुकानदार को लाभ हुआ। लाभ = विक्रय मूल्य - क्रय मूल्य अतः लाभ = 1525 रुपये - 1450 रुपये = 75 रुपये उत्तरः 75 रुपये लाभ उदाहरण 2ः ज्योति के पापा ने एक बकरी 6500 रुपये की खरीदी और 6880 रुपये की बेच दी। ज्योति के पापा को कितना लाभ या हानि हुई? हलः बकरी का क्रय मूल्य = 6500 रुपये बकरी का विक्रय मूल्य = 6880 रुपये [[चित्र:Hausziege_04.jpg|अंगूठाकार]] क्योकि बकरी का विक्रय मूल्य, क्रय मूल्य से अधिक है, इसलिए ज्योति के पापा को लाभ हुआ। लाभ = विक्रय मूल्य - क्रय मूल्य अतः लाभ = 6880 रुपये - 6500 रुपये = 380 रुपये उत्तरः 380 रुपये लाभ उदाहरण 3ः मोहन लाल ने एक गाजर की बोरी 700 रुपये की खरीदी और 540 रुपये की बेच दी। मोहन लाल को कितना लाभ या हानि हुई? हलः गाजर की बोरी का क्रय मूल्य = 700 रुपये गाजर की बोरी का विक्रय मूल्य = 540 रुपये [[चित्र:This_is_a_carrot.jpg|अंगूठाकार|A carrot is a vegetable.]] क्योकि गाजर की बोरी का क्रय मूल्य, विक्रय मूल्य से अधिक है, इसलिए मोहन लाल को हानि हुई। हानि = विक्रय मूल्य - क्रय मूल्य अतः हानि = 700 रुपये - 540 रुपये = 160 रुपये उत्तरः 160 रुपये हानि उदाहरण 4ः लाल सिंह ने एक कंप्यूटर 12000 रुपये में खरीदा और 10850 रुपये की बेच दिया। लाल सिंह को कितना लाभ या हानि हुई? हलः कंप्यूटर का क्रय मूल्य = 12000 रुपये कंप्यूटर का विक्रय मूल्य = 10850 रुपये [[चित्र:Amiga500_system.jpg|अंगूठाकार]] क्योकि कंप्यूटर का क्रय मूल्य, विक्रय मूल्य से अधिक है, इसलिए लाल सिंह को कंप्यूटर बेचने पर हानि हुई। हानि = विक्रय मूल्य - क्रय मूल्य अतः हानि = 12000 रुपये - 10850 रुपये = 1150 रुपये उत्तरः 1150 रुपये हानि === '''सीखना और बेहतर बनाने के लिए''' === हम जानते हैं कि अंकों में लिखी संख्या अगर शब्दों में लिखा जाए तो बेहतर समझ बनती है। अगले सवालों में और अभ्यास के प्रश्नों में हम उत्तर में प्राप्त संख्या को शब्दों में भी लिखेंगे। उदाहरण 5ः सलमान खान ने एक कुर्सी 1158 रुपये में खरीदी और 1085 रुपये की बेच दी। सलमान खान को कितना लाभ या हानि हुई? हलः कुर्सी का क्रय मूल्य = 1158 रुपये कुर्सी का विक्रय मूल्य = 1085 रुपये [[चित्र:Korean_chair_in_Finland.jpg|अंगूठाकार]] क्योकि कुर्सी का क्रय मूल्य, विक्रय मूल्य से अधिक है, इसलिए सलमान खान को कुर्सी बेचने पर हानि हुई। हानि = विक्रय मूल्य - क्रय मूल्य अतः हानि = 1158 रुपये - 1085 रुपये = 73 रुपये उत्तरः 73 रुपये हानि '''''शब्दों में''''' तिहत्तर रुपये हानि हुई। उदाहरण6ः एक फल विक्रेता ने दो दर्जन केले 120 रुपये में खरीदे और 135 रुपये में बेच दिए। फल विक्रेता को कितना लाभ या हानि हुई? <u>'''नया शब्द- फल विक्रेता'''</u> [[चित्र:Woman_at_work(A_fruit_seller).jpg|अंगूठाकार|फल बेचने वाली औरत]] '''''फल विक्रेता फल बेचने वाले को कहते हैं। जो रेहड़ी या दुकान पर फल बेचता या बेचती है।''''' '''नया शब्द- दर्जन''' '''''12 चीजों के समूह को दर्जन कहा जाता है।''''' जैसे- 1 दर्जन केले = 1×12 = 12 केले। 🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈 2 दर्जन गिलास = 1×12 = 24 गिलास 3 दर्जन संतरे = 1×12 = 36 गिलास हलः दो दर्जन केले का क्रय मूल्य = 120 रुपये दो दर्जन केले का विक्रय मूल्य = 135 रुपये क्योंकि दो दर्जन केले का विक्रय मूल्य, क्रय मूल्य से अधिक है, इसलिए फल विक्रेता को लाभ हुआ। लाभ = विक्रय मूल्य - क्रय मूल्य अतः लाभ = 135 रुपये - 120 रुपये = 15 रुपये उत्तरः 15 रुपये लाभ शब्दों मेंः पन्द्रह रुपये लाभ हुआ। '''<u>अभ्यास के प्रश्न</u>''' # एक दुकानदार ने एक पंखा 510 रुपये में खरीदा और 525 रुपये में बेच दिया। दुकानदार को कितना लाभ या हानि हुई?[[चित्र:Table_fan_FT-1201_II_30_cm_9186.jpg|अंगूठाकार|Table fan]] # रानी के पापा ने एक बकरा 8450 रुपये की खरीदा और 6500 रुपये की बेच दिया। रानी के पापा को कितना लाभ या हानि हुई?[[चित्र:10_Dikkes.JPG|अंगूठाकार|बकरा]] # प्रवीण कौर ने एक आलू की बोरी 1520 रुपये की खरीदी और 1270 रुपये की बेच दी। प्रवीण कौर को कितना लाभ या हानि हुई?[[चित्र:SZ_深圳_Shezhen_福田_Futian_人人樂百貨超市_Ren_Ren_Le_food_potato_red_bag_Nov_2017_IX1.jpg|अंगूठाकार]] # आमिर खान ने एक मेज 2520 रुपये में खरीदा और 3050 रुपये की बेच दिया। आमिर खान को कितना लाभ या हानि हुई? # एक व्यापारी ने एक कूलर 5850 रुपये में खरीदा और 5250 रुपये में बेच दिया। व्यापारी को कितना लाभ या हानि हुई? # मनजोत के पापा ने एक घोड़ा 18450 रुपये की खरीदा और 16500 रुपये की बेच दिया। मनजोत के पापा को कितना लाभ या हानि हुई?[[चित्र:Muybridge_race_horse_animated.gif|अंगूठाकार]] # सिमरन ने एक भिंड़ी की बोरी 1120 रुपये की खरीदी और 1600 रुपये की बेच दी। सिमरन को कितना लाभ या हानि हुई? # शेख रशीद ने एक मोटर 5220 रुपये में खरीदी और 4500 रुपये की बेच दी। शेख रशीद को कितना लाभ या हानि हुई? # शानवीर phc62blxhfcrsb4rshv43dfh83azj4k कक्षा चौथी का गणित/आधा, तिहाई और चौथाई 0 10953 81684 80024 2024-12-11T15:39:39Z Mulkh Singh 12753 81684 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=गुल्लक|Curr=आधा, तिहाई और चौथाई|Next=दुपट्टे की लम्बाई}} एक दिन शेखचिल्ली कुछ लड़कों के साथ, अपने कस्बे के बाहर एक पुलिया पर बैठा था। तभी एक सज्जन शहर से आए और लड़कों से पूछने लगे, "क्यों भाई, शेख साहब के घर को कौन-सी सड़क गई है ?" शेखचिल्ली के पिता को सब ‘शेख साहब' कहते थे । उस गाँव में वैसे तो बहुत से शेख थे, परंतु ‘शेख साहब' चिल्ली के अब्बाजान ही कहलाते थे । वह व्यक्ति उन्हीं के बारे में पूछ रहा था। वह शेख साहब के घर जाना चाहता था । परन्तु उसने पूछा था कि शेख साहब के घर कौन-सा रास्ता जाता है। शेखचिल्ली को मजाक सूझा । उसने कहा, "क्या आप यह पूछ रहे हैं कि शेख साहब के घर कौन-सा रास्ता जाता है ?" "‘हाँ-हाँ, बिल्कुल !" उस व्यक्ति ने जवाब दिया । इससे पहले कि कोई लड़का बोले, शेखचिल्ली बोल पड़ा, "इन तीनों में से कोई भी रास्ता नहीं जाता ।" "‘तो कौन-सा रास्ता जाता है ?" "‘कोई नहीं ।'" "क्या कहते हो बेटे?' शेख साहब का यही गाँव है न ? वह इसी गाँव में रहते हैं न ?" "हाँ, रहते तो इसी गाँव में हैं ।" "‘मैं यही तो पूछ रहा हूँ कि कौन-सा रास्ता उनके घर तक जाएगा " "साहब, घर तक तो आप जाएंगे ।" शेखचिल्ली ने उत्तर दिया, "यह सड़क और रास्ते यहीं रहते हैं और यहीं पड़े रहेंगे । ये कहीं नहीं जाते। ये बेचारे तो चल ही नहीं सकते। इसीलिए मैंने कहा था कि ये रास्ते, ये सड़कें कहीं नहीं जाती । यहीं पर रहती हैं । मैं शेख साहब का बेटा चिल्ली हूँ । मैं वह रास्ता बताता हूँ, जिस पर चलकर आप घर तक पहुँच जाएंगे ।" "अरे बेटा चिल्ली !" वह आदमी प्रसन्न होकर बोला, "तू तो वाकई बड़ा समझदार और बुद्धिमान हो गया है । तू छोटा-सा था जब मैं गाँव आया था । मैंने गोद में खिलाया है तुझे । चल बेटा, घर चल मेरे साथ । तेरे अब्बा शेख साहब मेरे लँगोटिया यार हैं। शेखचिल्ली उस सज्जन के साथ हो लिया और अपने घर ले गया । dxn7fcsq2ocwmh4vrnsgt6wjmmmtjs0 कक्षा चौथी का गणित/दुपट्टे की लम्बाई 0 10954 81685 80025 2024-12-11T15:41:52Z Mulkh Singh 12753 81685 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=आधा, तिहाई और चौथाई|Curr=दुपट्टे की लम्बाई|Next=मीना और पिंकी का तराजू}} शेखचिल्ली पूरा बेवक़ूफ़ था और हमेशा बेवकूफी भरी बातें ही करता था। शेख चिल्ली की माँ उसकी बेवकूफी भरी बातों से बहुत परेशान रहती थी। एक बार शेखचिल्ली ने अपनी माँ से पूछा कि माँ लोग मरते कैसे हैं? अब माँ सोचने लगी कि इस बेवक़ूफ़ को कैसे समझाया जाए कि लोग कैसे मरते हैं, माँ ने कहा कि बस आँखें बंद हो जाती हैं और लोग मर जाते हैं। शेखचिल्ली ने सोचा कि उसे एक बार मर कर देखना चाहिए। उसने गाँव के बाहर जाकर एक गड्ढा खोदा और उसमें आँखें बंद करके लेट गया। रात होने पर उस रास्ते से दो चोर गुजरे। एक चोर ने दुसरे से कहा कि हमारे साथ एक साथी और होता तो कितना अच्छा होता, एक घर के आगे रहता दूसरा घर के पीछे रहता और तीसरा आराम से घर के अंदर चोरी करता। शेखचिल्ली यह बात सुन रहा था, वो अचानक बोल पड़ा “भाइयों मैं तो मर चुका हूँ, अगर जिन्दा होता तो तुम्हारी मदद कर देता।” चोर समझ गए कि यह बिलकुल बेवक़ूफ़ आदमी है। एक चोर शेखचिल्ली से बोला “भाई जरा इस गड्ढे में से बाहर निकल कर हमारी मदद कर दो, थोड़ी देर बाद आकर फिर मर जाना। मरने की ऐसी भी क्या जल्दी है।” शेखचिल्ली को गड्ढे में पड़े पड़े बहुत भूख लगने लगी थी और ठंड भी, उसने सोचा कि चलो चोरों की मदद ही कर दी जाए। तीनों ने मिल कर तय किया की शेखचिल्ली अंदर चोरी करने जाएगा, एक चोर घर के आगे खड़ा रहकर ध्यान रखेगा और दूसरा चोर घर के पीछे ध्यान रखेगा। शेखचिल्ली को तो बहुत अधिक भूख लगी थी इसलिए वो चोरी करने के बजाय घर में कुछ खाने पीने की चीजें ढूंढने लगा। रसोई में शेखचिल्ली को दूध, चीनी और चावल रखे हुए मिल गए। “अरे वाह! क्यों न खीर बनाकर खाई जाए” – शेखचिल्ली ने सोचा और खीर बनानी शुरू कर दी। रसोई में ही एक बुढ़िया ठण्ड से सिकुड़ कर सोई हुई थी। जैसे ही बुढ़िया को चूल्हे से आँच लगनी शुरू हुई तो गर्मी महसूस होने पर सही से खुल कर सोने के लिए उसने अपने हाथ फैला दिए। शेखचिल्ली ने सोचा कि यह बुढ़िया खीर मांग रही है। शेखचिल्ली बोला – “अरी बुढ़िया मैं इतनी सारी खीर बना रहा हूँ, सारी अकेला थोड़े ही खा लूंगा, शांति रख, तुझे भी खिलाऊंगा।” लेकिन बुढ़िया को जैसे जैसे सेंक लगती रही तो वो और ज्यादा फ़ैल कर सोने लगी, उसने हाथ और भी ज़्यादा फैला दिए। शेखचिल्ली को लगा कि यह बुढ़िया खीर के लिए ही हाथ फैला रही है, उसने झुंझला कर गरम गरम खीर बुढ़िया के हाथ पर रख दी। बुढ़िया का हाथ जल गया। चीखती चिल्लाती बुढ़िया एकदम हड़बड़ा कर उठ गई और शेखचिल्ली पकड़ा गया। शेखचिल्ली बोला – “अरे मुझे पकड़ कर क्या करोगे, असली चोर तो बाहर हैं। मुझे बहुत भूख लगी थी, मैं तो अपने लिए खीर बना रहा था।” इस तरह शेखचिल्ली ने अपने साथ साथ असली चोरों को भी पकड़वा दिया। 56apq28xcbyvqlu5643m7r8wt7couxz कक्षा चौथी का गणित/मीना और पिंकी का तराजू 0 10955 81686 80026 2024-12-11T15:45:53Z Mulkh Singh 12753 81686 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=दुपट्टे की लम्बाई|Curr=मीना और पिंकी का तराजू|Next=किसमें कितना पानी}} एक लोमड़ी थी, जो अंगूर खाने की बहुत शौकीन थी। एक बार वह अंगूरों के बाग से गुजर रही थी। चारों ओर स्वादिष्ट अंगूरों के गुच्छे लटक रहे थे। मगर वे सभी लोमड़ी की पहुंच से बाहर थे। अंगूरों को देखकर लोमड़ी के मुंह में बार-बार पानी भर आता था। वह सोचने लगी-‘वाह ! कितने सुंदर और मीठे अंगूर हैं। काश मैं इन्हें खा सकती।’ यह सोचकर लोमड़ी उछल-उछल कर अंगूरों के गुच्छों तक पहुंचने की कोशिश करने लगी। परंतु वह हर बार नाकाम रह जाती। बस, अंगूर के गुच्छे उसकी उछाल से कुछ ही दूर रह जाते थे। अंत में बेचारी लोमड़ी उछल-उछल कर थक गई और अपने घर की ओर चल दी। जाते-जाते उसने सोचा—‘ये अंगूर खट्टे हैं। इन्हें पाने के लिए अपना समय नष्ट करना ठीक नहीं !’ i4n44s2urs418hmh7568ww0l9dunk7i कक्षा चौथी का गणित/किसमें कितना पानी 0 10956 81687 80027 2024-12-11T15:47:24Z Mulkh Singh 12753 81687 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=मीना और पिंकी का तराजू|Curr=किसमें कितना पानी|Next=किसका घेरा कितना}} एक बार की बात है कि एक भेड़िया और एक सिंह शिकार की तलाश में साथ-साथ घूम रहे थे। एक प्रकार से भेड़िया शेर का मंत्री था। भेड़िये की सलाह पर शेर गौर अवश्य करता था। घूमते समय अचानक भेड़िये को भेड़ों के मिमियाने की आवाज़ सुनाई पड़ी। ‘‘आपने भेड़ों के मिमियाने की आवाज सुनी महाराज ?’’ भेड़िये ने पूछा, फिर बोला—‘‘आप यहीं ठहरिए। मैं जाकर देखता हूं और यदि हो सका तो एक मोटी-ताजी भेड़ मारकर आपके भोजन का प्रबन्ध करता हूं।’’ ‘‘ठीक है।’’ सिंह बोला—‘‘मगर अधिक समय मत लगाना। मैं भूखा हूं।’’ भेड़िया भेड़ की तलाश में निकल पड़ा। कुछ सौ गज आगे जाकर वह भेड़बाड़े के पास जा पहुंचा। मगर यह देखकर भेड़िये का मुंह लटक गया कि भेड़बाड़े के सभी दरवाजे मजबूती से बंद थे तथा बड़े-बड़े खूंखार कुत्ते भी भेड़बाड़े की निगरानी कर रहे थे। भेड़िया समझ गया कि उसकी दाल नहीं गलने वाली। अब क्या करे ? उसने सोचा कि जान जोखिम में डालने से तो बेहतर है कि लौट कर सिंह से कोई बहाना बना दिया जाए। यह सोच भेड़िया लौट आया और सिंह से बोला—‘‘उन भेड़ों का शिकार करना बेकार है। वे बहुत दुबली-पतली और बीमार सी लगती हैं। उनके शरीर में जरा भी मांस नहीं है। उन्हें तो उनके हाल पर ही छोड़ देना अच्छा है। जब उनके शरीर पर चर्बी चढ़ जाए, तभी उन्हें खाना ठीक रहेगा और वैसे भी मोटी-ताजी भेड़ों को खाकर ही हमारी भूख मिट सकती है।’’ scgs2s7pvirq7x61xyr5exzxq89c8c5 कक्षा चौथी का गणित/किसका घेरा कितना 0 10957 81688 80028 2024-12-11T15:48:07Z Mulkh Singh 12753 81688 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=किसमें कितना पानी|Curr=किसका घेरा कितना|Next=पतंग ने घेरी जगह}} एक किसान ने जीवन भर घोर परिश्रम किया तथा अपार धन कमाया। उसके चार पुत्र थे, चारों ही निकम्मे और कामचोर। किसान चाहता था कि उसके पुत्र भी उसके परिश्रमी जीवन का अनुसरण करें। मगर किसान के समझाने का उन पर कोई असर नहीं होता था। इस कारण वह किसान बेहद दुखी रहता था। जब वह बहुत बूढ़ा हो गया और उसे लगने लगा कि अब वह कुछ दिनों का मेहमान है, तो एक दिन उसने अपने चारों बेटों को बुलाया और कहा— ‘‘सुनो मेरे बेटो ! मेरी जीवन लीला जल्दी समाप्त होने वाली है। मगर मरने से पहले मैं तुम्हें एक रहस्य की बात बताना चाहता हूं। हमारे खेतों में अपार धन गड़ा हुआ है। तुम सब मेरी मृत्यु के बाद उस खेत को खूब गहरा खोदना, तब तुम्हें वहां से बहुत-सा धन प्राप्त होगा।’’ यह सुनकर किसान के बेटे बेहद प्रसन्न हुए कि बाप के मरने के बाद भी कुछ नहीं करना होगा और बाकी की जिंदगी मजे से काटेंगे। कुछ दिनों बाद किसान की मृत्यु हो गई। पिता के मरते ही उसके बेटों ने तुरत-फुरत उसका अंतिम संस्कार किया और दूसरे दिन ही कुदाल और फावड़े लेकर खेत खोदने में जुट गए। परंतु कई दिनों तक परिश्रम करने के बाद भी उन्हें गड़ा हुआ धन प्राप्त नहीं हुआ। अब चारों ने जी-भर कर उसे कोसा, मगर अब क्या किया जाए ? अब चारों ने सलाह की कि जब खेत खुद ही गया है तो क्यों न इसमें अंगूर बो दिए जाएं। खेत की गहरी खुदाई हुई थी, इसलिए फसल बहुत अच्छी हुई तथा किसान के बेटों को आशा से अधिक जन प्राप्त हुआ। अब किसान के पुत्रों को इस बात का एहसास हुआ कि उनके पिता के कहने का क्या अर्थ था। उसी दिन चारों भाइयों ने परिश्रम करने का संकल्प लिया, क्योंकि परिश्रम से जो धन उन्हें प्राप्त हुआ था, उससे उन्हें अपार खुशी हो रही थी। e0jwp1034g9qjtmntmlp2sn2nz414or कक्षा चौथी का गणित/पतंग ने घेरी जगह 0 10958 81689 80029 2024-12-11T15:49:00Z Mulkh Singh 12753 81689 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=किसका घेरा कितना|Curr=पतंग ने घेरी जगह|Next=मिठ्ठू ने बिखेरी स्याही}} एक बार एक बारहसिंगा तालाब के किनारे पानी पी रहा था। अभी वह दो-तीन घूंट पानी ही पी पाया था कि तभी उसे पानी में अपनी छाया दिखाई दी। अपने सींगों को देखकर वह सोचने लगा—‘मेरे सींग कितने सुंदर हैं। किसी दूसरे जानवर के सींग इतने सुंदर नहीं हैं।’ इसके बाद उसकी नजर अपने पैरों पड़ी। अपने पतले और सूखे पैरों को देखकर उसे बेहद दुख हुआ। उसने सोचा—‘मेरे पैर कितने दुबले-पतले और भद्दे हैं।’ पानी पीकर वह कुछ कदम आगे बढ़ा था कि उसके कानों में बिगुल की आवाज सुनाई दी। वह समझ गया कि शिकारी उसकी ताक में हैं। जान बचाने की फिक्र में वह जितना तेज दौड़ सकता था, दौड़ा। उसके चपल वह फुरतीले पैर शीघ्र ही उसे शिकारियों की पहुंच से दूर ले गए। वह तेजी से दौड़ता ही जा रहा था और अब घने जंगल में वहां पहुंच गया था जहां घने पेड़ व लम्बी-लम्बी झाड़ियां उगी हुई थीं। तभी उसके सींग घनी झाड़ियों में उलझ गए और न चाहते हुए भी उसे रुकना पड़ा। सींग कुछ ऐसे उलझ गए थे कि वह हिल भी नहीं पा रहा था। शिकारी भी पास आते जा रहे थे और बारहसिंगा भी सींग छुड़ाने का असफल प्रयास कर रहा था। शिकारी उसके पास जा पहुंचे थे और सरलता से उसका शिकार कर सकते थे। अब बारहसिंगा मौत के मुंह में खड़ा था, समझ गया था कि अंत अब निकट ही है। उसने कातर दृष्टि से शिकारियों की ओर देखा, लेकिन वे उसे क्यों छोड़ने वाले थे। तभी एक तीर आकर उसे लगा और वह जमीन पर गिर पड़ा। वह सोच रहा था, ‘मैं अपने पैरों को देखकर खुश नहीं था, जबकि इन्होंने ही मेरी जान बचाने की कोशिश की; और मेरे यह सुन्दर सींग...इन्हीं की वजह से मुझे शिकारियों के हाथों मरना पड़ रहा है।’ यह सोचते-सोचते ही बारहसिंगे ने प्राण त्याग दिए। i3mf3mlbe02bdtnwbttsvtwu724lf9f कक्षा चौथी का गणित/मिठ्ठू ने बिखेरी स्याही 0 10959 81690 80030 2024-12-11T15:49:46Z Mulkh Singh 12753 81690 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=पतंग ने घेरी जगह|Curr=मिठ्ठू ने बिखेरी स्याही|Next=स्कोर चार्ट}} एक कुत्ते ने कसाई की दुकान से मांस का एक टुकड़ा चुराया और इधर-उधर भाग कर कोई ऐसा स्थान खोजने लगा जहाँ शान्ति से बैठ कर वह उस मांस के टुकड़े का मजा ले सके। तभी उसे एक नदी के ऊपर बना हुआ पुल पार करना पड़ा। जब वह पुल पार कर रहा था तो उसकी नजर पानी में अपने प्रतिबिम्ब पर पड़ी। यह देखकर वह चौंक गया कि पानी में दिखाई देने वाले कुत्ते के मुंह में भी वैसा ही मांस का टुकड़ा था। वह सोचने लगा कि क्यों न दूसरे कुत्ते की बोटी भी झपट कर खा लूं। मन में यह लालच आते ही वह दांत निकाल कर गुर्राया और पानी में छलांग लगा दी। परन्तु उस मूर्ख कुत्ते ने जैसे ही दूसरे कुत्ते के मुंह से मांस का टुकड़ा छीनना चाहा, उसके मुंह में दबा मांस का टुकड़ा भी पानी में गिर गया और साथ ही पानी में पड़ने वाला उसका प्रतिबिम्ब भी ओझल हो गया। उसके मुंह में दबा मांस पानी में गिरकर नदी के तल में चला गया। मूर्खता के कारण उसका अपना भोजन भी नदी में डूब गया और उसे उस दिन भूखा ही रहना पड़ा। ottgv2kfssxqlybvpm0jyh3ryoyv32k कक्षा चौथी का गणित/स्कोर चार्ट 0 10960 81691 80031 2024-12-11T15:51:59Z Mulkh Singh 12753 81691 wikitext text/x-wiki {{Navigate|Prev=मिठ्ठू ने बिखेरी स्याही|Curr=स्कोर चार्ट|Next=}} “मैं तो ज़रूर जाऊँगा, चाहे कोई छुट्टी दे या न दे।" बलदेव सब लड़कों को सरकस देखने चलने की सलाह दे रहा है। बात यह थी कि स्कूल के पास एक मैदान में सरकस पार्टी आई हुई थी। सारे शहर की दीवारों पर उसके विज्ञापन चिपका दिए गए थे। विज्ञापन में तरह-तरह के जंगली जानवर अजीब-अजीब काम करते दिखाए गए थे। लड़के तमाशा देखने के लिए ललचा रहे थे। पहला तमाशा रात को शुरू होने वाला था मगर हेडमास्टर साहब ने लड़कों को वहाँ जाने की मनाही कर दी थी। इश्तिहार बड़ा आकर्षक था- 'आ गया है! आ गया है!' 'जिस तमाशे की आप लोग भूख-प्यास छोड़कर इंतज़ार कर रहे थे, वही बंबई सरकस आ गया है।' 'आइए और तमाशे का आनंद उठाइए। बड़े-बड़े खेलों के सिवा एक खेल और भी दिखाया जाएगा, जो न किसी ने देखा होगा और न सुना होगा।' लड़कों का मन तो सरकस में लगा हुआ था। सामने किताबें खोले जानवरों की चर्चा कर रहे थे। क्योंकर शेर और बकरी एक बर्तन में पानी पिएँगे! और इतना बड़ा हाथी पैरगाड़ी पर कैसे बैठेगा ? पैरगाड़ी के पहिए बहुत बड़े-बड़े होंगे! तोता बंदूक छोड़ेगा! और बनमानुष बाबू बनकर मेज पर बैठेगा! बलदेव सबसे पीछे बैठा हुआ अपनी हिसाब की कॉपी पर शेर की तस्वीर खींच रहा था और सोच रहा था कि कल शनीचर नहीं, इतवार होता तो कैसा मज़ा आता। बलदेव ने बड़ी मुश्किल से कुछ पैसे जमा किए थे। मना रहा था कि कब छूट्टी हो और कब भागूँ। हेडमास्टर साहब का हुक्म सुनकर वह जामे से बाहर हो गया। छुट्टी होते ही वह बाहर मैदान में निकल आया और लड़कों से बोला, “मैं तो जाऊँगा, ज़रूर जाऊँगा चाहे कोई छुट्टी दे या न दे।” मगर और लड़के इतने साहसी न थे। कोई उसके साथ जाने पर राज़ी न हुआ। बलदेव अब अकेला पड़ गया। मगर वह बड़ा जिद्दी था, दिल में जो बात बैठ जाती, उसे पूरा करके ही छोड़ता था। शनीचर को और लड़के तो मास्टर के साथ गेंद खेलने चले गए, बलदेव चुपके से खिसककर सरकस की ओर चला। वहाँ पहुँचते ही उसने जानवरों को देखने के लिए एक आने का टिकट खरीदा और जानवरों को देखने लगा। इन जानवरों को देखकर बलदेव मन में बहुत झुँझलाया वह शेर है! मालूम होता है महीनों से इसे मलेरिया बुखार आ रहा हो। वह भला क्या बीस हाथ ऊँचा उछलेगा! और यह सुंदर-वन का बाघ है? जैसे किसी ने इसका खून चूस लिया हो। मुर्दे की तरह पड़ा है। वाह रे भालू! यह भालू है या सूअर, और वह भी काना, जैसे मौत के चंगुल से निकल भागा हो। अलबत्ता चीता कुछ जानदार है और एक तीन टाँग का कुत्ता भी। यह कहकर बड़े ज़ोर से हँसा। उसकी एक टाँग किसने काट ली? दुमकटे कुत्ते तो देखे थे, पैरकटा कुत्ता आज ही देखा! और यह दौड़ेगा कैसे? उसे अफ़सोस हुआ कि गेंद छोड़कर यहाँ नाहक आया। एक आने पैसे भी गए। इतने में एक बड़ा भारी गुब्बारा दिखाई दिया। उसके पास एक आदमी खड़ा चिल्ला रहा था- “आओ, चले आओ, चार आने में आसमान की सैर करो।! अभी वह उसी तरफ देख रहा था कि अचानक शोर सुनकर वह चौंक पड़ा। पीछे फिरकर देखा तो मारे डर के उसका दिल काँप उठा। वही चीता न जाने किस तरह पिंजरे से निकलकर उसी की तरफ दौड़ा चला आ रहा था। बलदेव जान लेकर भागा। इतने में एक और तमाशा हुआ। इधर से चीता गुब्बारे की तरफ दौड़ा। जो आदमी गुब्बारे की रस्सी पकड़े हुए था, वह चीते को अपनी तरफ आता देखकर बेतहाशा भागा। बलदेव को और कुछ न सूझा तो वह झट से गुब्बारे पर चढ़ गया। चीता भी शायद उसे पकड़ने के लिए कूदकर गुब्बारे पर जा पहुँचा। गुब्बारे की रस्सी छोड़कर तो वह आदमी पहले ही भाग गया था। वह गुब्बारा उड़ने के लिए बिलकुल तैयार था। रस्सी छूटते ही वह ऊपर उठा। बलदेव और चीता दोनों ऊपर उठ गए। बात की बात में गुब्बारा ताड़ के बराबर जा पहुँचा। बलदेव ने एक बार नीचे देखा तो लोग चिल्ला-चिल्लाकर उसे बचने के उपाय बतलाने लगे। मगर बलदेव के तो होश उड़े हुए थे। उसकी समझ में कोई बात न आई। ज्यों-ज्यों गुब्बारा ऊपर उठता जाता था चीते की जान निकली जाती थी। उसकी समझ में न आता था कि कौन मुझे आसमान की ओर लिए जाता है। वह चाहता तो बड़ी आसानी से बलदेव को चट कर जाता, मगर उसे अपनी ही जान की फ़िक्र पड़ी हुई थी। सारा चीतापन भूल गया था। आखिर वह इतना डरा कि उसके हाथ-पाँव फूल गए और वह फ़िसलकर उलटा नीचे गिरा। ज़मीन पर गिरते ही उसकी हड्डी-पसली चूर-चूर हो गई। अब तक तो बलदेब को चीते का डर था। अब यह फ़िक्र हुई कि गुब्बारा मुझे कहाँ लिए जाता है। वह एक बार घंटाघर की मीनार पर चढ़ा था। ऊपर से उसे नीचे के आदमी खिलौनों-से और घर घरौदों-से लगते थे। मगर इस वक्‍त वह उससे कई गुना ऊँचा था। एकाएक उसे एक बात याद आ गई। उसने किसी किताब में पढ़ा था कि गुब्बारे का मुँह खोल देने से गैस निकल जाती है और गुब्बारा नीचे उतर आता है। मगर उसे यह न मालूम था कि मुँह बहुत धीरे- धीरे खोलना चाहिए। उसने एकदम उसका मुँह खोल दिया और गुब्बारा बड़े जोर से गिरने लगा। जब वह ज़मीन से थोड़ी ऊँचाई पर आ गया तो उसने नीचे की तरफ देखा, दरिया बह रहा था। फिर तो वह रस्सी छोड़कर दरिया में कूद पड़ा और तैरकर निकल आया। gnteckyn1tptiwhna28q90j993l9b2i