महादेवी वर्मा

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महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा की तस्वीर
जन्म 26 मार्च, 1907
फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु 11 सितंबर, 1987
इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
कारोबार अध्यापन व लेखन
जनक गोविंद प्रसाद वर्मा, हेमरानी देवी


महादेवी वर्मा (26 मार्च, 190711 सितंबर, 1987) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[क] में से एक मानी जाती हैं।[१] आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है।[२] कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।[ख] उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही समीक्षकों तक को गहराई तक प्रभावित किया।[ग] उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। अपने अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या रहीं। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका[३] होने के साथ ही वे कुशल चित्रकार भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। वर्ष 2007 उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया जा रहा है।

अनुक्रमणिका

[बदलें] जीवनी

मुख्य लेख: महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

[बदलें] जन्म और परिवार

महादेवी का जन्म 26 मार्च, 1907 को प्रात: 8 बजे फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अत: बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी — महादेवी मानते हुए[४] पुत्री का नाम महादेवी रखा। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता का नाम हेमरानी देवी था। हेमरानी देवी बड़ी धर्म परायण, कर्मनिष्ठ, भावुक एवं शाकाहारी महिला थीं।[४] विवाह के समय अपने साथ सिंहासनासीन भगवान की मूर्ति भी लायी थीं[४] वे प्रतिदिन कई घंटे पूजा-पाठ तथा रामायण, गीता एवं विनय पत्रिका का पारायण करती थीं और संगीत में भी उनकी अत्यधिक रुचि थी। इसके बिल्कुल विपरीत उनके पिता गोविन्द प्रसाद वर्मा सुन्दर, विद्वान, संगीत प्रेमी, नास्तिक, शिकार करने एवं घूमने के शौकीन, मांसाहारी तथा हँसमुख व्यक्ति थे। महादेवी वर्मा के मानस बंधुओं में सुमित्रानंदन पंत एवं निराला का नाम लिया जा सकता है, जो उनसे राखी बँधवाते रहे।[५] निराला जी से उनकी अत्यधिक निकटता थी,[६]उनकी पुष्ट कलाइयों में महादेवी जी लगभग चालीस वर्षों तक राखी बाँधती रहीं। [७]

[बदलें] शिक्षा

महादेवी — युवावस्था का एक चित्र
महादेवी — युवावस्था का एक चित्र

महादेवी जी की शिक्षा इंदौर में मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। बीच में विवाह जैसी बाधा पड़ जाने के कारण कुछ दिन शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। 1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत की। वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और 1925 तक जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, वे एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था। कालेज में सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई। सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी का हाथ पकड़ कर सखियों के बीच में ले जाती और कहतीं ― “सुनो, ये कविता भी लिखती हैं”। 1932 में जब उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. पास किया तब तक उनके दो कविता संग्रह नीहार तथा रश्मि प्रकाशित हो चुके थे।

[बदलें] वैवाहिक जीवन

सन् 1916 में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। श्री वर्मा इण्टर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी जी उस समय क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थीं। श्रीमती महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी। कारण कुछ भी रहा हो पर श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बंध मधुर ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा श्री वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे। श्री वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था ही। उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। 1966 में पति की मृत्यु के बाद वे स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं।

[बदलें] कार्यक्षेत्र

महादेवी, हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि के साथ
महादेवी, हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि के साथ

महादेवी का कार्यक्षेत्र लेखन, संपादन और अध्यापन रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। यह कार्य अपने समय में महिला-शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम था। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। 1932 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चांद’ का कार्यभार संभाला। 1934 में नीरजा, तथा 1936 में सांध्यगीत नामक कविता संग्रह प्रकाशित हुए। 1939 में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में यामा शीर्षक से प्रकाशित किया गया। उन्होंने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किये। इसके अतिरिक्त उनकी 18 काव्य और गद्य कृतियां हैं जिनमें मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ और अतीत के चलचित्र प्रमुख हैं। सन 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की और पं इलाचंद्र जोशी के सहयोग से साहित्यकार का संपादन संभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। उन्होंने भारत में महिला कवि सम्मेलनों की नीव रखी।[८]

इस प्रकार का पहला अखिल भारतवर्षीय कवि सम्मेलन 15 अप्रैल 1933 को सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में संपन्न हुआ।[९] वे हिंदी साहित्य में रहस्याद की प्रवर्तिका भी मानी जाती हैं। [१०]

महादेवी साहित्य संग्रहालय, रामगढ़
महादेवी साहित्य संग्रहालय, रामगढ़

महादेवी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं। महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने जनसेवा का व्रत लेकर झूसी में कार्य किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। 1936 में नैनीताल से 25 किलोमीटर दूर रामगढ़ कसबे के उमागढ़ नामक गाँव में महादेवी वर्मा ने एक बँगला बनवाया था। जिसका नाम उन्होंने मीरा मंदिर रखा था। जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए काम करती रहीं. विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने बहुत काम किया। आजकल इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है।[११]शृंखला की कड़ियाँ में स्त्रियों की मुक्ति और विकास के लिए उन्होंने जिस साहस व दृढ़ता से आवाज़ उठाई हैं और जिस प्रकार सामाजिक रूढ़ियों की निंदा की है उससे उन्हें महिला मुक्तिवादी भी कहा गया।[१२] महिलाओं व शिक्षा के विकास के कार्यों और जनसेवा के कारण उन्हें समाज-सुधारक भी कहा गया है। [१३] उनके संपूर्ण गद्य साहित्य में पीड़ा या वेदना के कहीं दर्शन नहीं होते बल्कि अदम्य रचनात्मक रोष समाज में बदलाव की अदम्य आकांक्षा और विकास के प्रति सहज लगाव परिलक्षित होता है।[१४]

उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में बिताया। 11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद में रात 9 बजकर 30 मिनट पर उनका देहांत हो गया।

[बदलें] प्रमुख कृतियाँ

मुख्य लेख: महादेवी का रचना संसार

महादेवी जी कवयित्री होने के साथ-साथ विशिष्ट गद्यकार भी थीं। उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं।

[बदलें] कविता संग्रह

1. नीहार (1930), 2. रश्मि (1932), 3. नीरजा (1934), 4. सांध्यगीत (1936), 5. दीपशिखा (1942), 6. सप्तपर्णा (1959), 7. प्रथम आयाम (1974), 8. अग्निरेखा (1990)
श्रीमती महादेवी वर्मा के अन्य अनेक काव्य संग्रह भी प्रकाशित हैं, किन्तु यह सभी उपर्युक्त रचनाओं के गीतों से सम्पादित किये गये हैं, जैसे परिक्रमा, सन्धिनी, यामा, आधुनिक कवि महादेवी आदि।

[बदलें] महादेवी वर्मा का गद्य साहित्य

पन्थ तुम्हारा मंगलमय हो। महादेवी के हस्ताक्षर
पन्थ तुम्हारा मंगलमय हो। महादेवी के हस्ताक्षर

अन्य निबंध में संकल्पिता तथा विविध संकलनों में स्मारिका, स्मृति चित्र, संभाषण, संचयन, दृष्टिबोध उल्लेखनीय हैं। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ तथा ‘साहित्यकार’ मासिक की भी संपादक रहीं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ और रंगवाणी नाट्य संस्था की भी स्थापना की।

[बदलें] समालोचना

मुख्य लेख: महादेवी की काव्यगत विशेषताएँ
महादेवी की कलाकृति से सजा मुखपृष्ठ
महादेवी की कलाकृति से सजा मुखपृष्ठ

आधुनिक गीत काव्य में महादेवी जी का स्थान सर्वोपरि है। उनकी कविता में प्रेम की पीर और भावों की तीव्रता वर्तमान होने के कारण भाव, भाषा और संगीत की जैसी त्रिवेणी उनके गीतों में प्रवाहित होती है वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। महादेवी के गीतों की वेदना, प्रणयानुभूति, करुणा और रहस्यवाद काव्यानुरागियों को आकर्षित करते हैं। पर इन रचनाओं की विरोधी आलोचनाएँ सामान्य पाठक को दिग्भ्रमित करती हैं। आलोचकों का एक वर्ग वह है, जो यह मानकर चलते हैं कि महादेवी का काव्य नितान्त वैयक्तिक है। उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा, कृत्रिम और बनावटी है।

  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे मूर्धन्य आलोचकों ने उनकी वेदना और अनुभूतियों की सच्चाई पर प्रश्न चिह्न लगाया है —[घ] दूसरी ओर
  • आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे समीक्षक उनके काव्य को समष्टि परक मानते हैं।[ङ]
  • शोमेर ने ‘दीप’ (नीहार), मधुर मधुर मेरे दीपक जल (नीरजा) और मोम सा तन गल चुका है कविताओं को उद्धृत करते हुए निष्कर्ष निकाला है कि ये कविताएं महादेवी के ‘आत्मभक्षी दीप’ अभिप्राय को ही व्याख्यायित नहीं करतीं बल्कि उनकी कविता की सामान्य मुद्रा और बुनावट का प्रतिनिधि रूप भी मानी जा सकती हैं।
  • सत्यप्रकाश मिश्र छायावाद से संबंधित उनकी शास्त्र मीमांसा के विषय में कहते हैं ― “महादेवी ने वैदुष्य युक्त तार्किकता और उदाहरणों के द्वारा छायावाद और रहस्यवाद के वस्तु शिल्प की पूर्ववर्ती काव्य से भिन्नता तथा विशिष्टता ही नहीं बतायी, यह भी बताया कि वह किन अर्थों में मानवीय संवेदन के बदलाव और अभिव्यक्ति के नयेपन का काव्य है। उन्होंने किसी पर भाव साम्य, भावोपहरण आदि का आरोप नहीं लगाया केवल छायावाद के स्वभाव, चरित्र, स्वरूप और विशिष्टता का वर्णन किया।”[१५]
  • प्रभाकर श्रोत्रिय जैसे मनीषी का मानना है कि जो लोग उन्हें पीड़ा और निराशा की कवयित्री मानते हैं वे यह नहीं जानते कि उस पीड़ा में कितनी आग है जो जीवन के सत्य को उजागर करती है। —[च]

यह सच है कि महादेवी का काव्य संसार छायावाद की परिधि में आता है, पर उनके काव्य को उनके युग से एकदम असम्पृक्त करके देखना, उनके साथ अन्याय करना होगा। महादेवी एक सजग रचनाकार हैं। बंगाल के अकाल के समय 1943 में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी। इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय नामक काव्य संग्रह का संपादन किया था। यह संकलन उनके युगबोध का प्रमाण है।

गद्य साहित्य के क्षेत्र में भी उन्होंने कम काम नहीं किया। उनका आलोचना साहित्य उनके काव्य की भांति ही महत्वपूर्ण है। उनके संस्मरण भारतीय जीवन के संस्मरण चित्र हैं।

उन्होंने चित्रकला का काम अधिक नहीं किया फिर भी जलरंगों में ‘वॉश’ शैली से बनाए गए उनके चित्र धुंधले रंगों और लयपूर्ण रेखाओं का कारण कला के सुंदर नमूने समझे जाते हैं। उन्होंने रेखाचित्र भी बनाए हैं। दाहिनी ओर करीन शोमर की किताब के मुखपृष्ठ पर महादेवी द्वारा बनाया गया रेखाचित्र ही रखा गया है। उनके अपने कविता संग्रहों यामा और दीपशिखा में उनके रंगीन चित्रों और रेखांकनों को देखा जा सकता है।

[बदलें] पुरस्कार व सम्मान

डाकटिकट
डाकटिकट

उन्हें प्रशासनिक, अर्धप्रशासनिक और व्यक्तिगत सभी संस्थाओँ से पुरस्कार व सम्मान मिले।

  • 1943 में उन्हें ‘मंगलाप्रसाद पुरस्कार’ एवं ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गयीं। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिये ‘पद्म भूषण’ की उपाधि दी। 1979 में साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली वे पहली महिला थीं।[१६] 1988 में उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार की पद्मविभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया।[५]
  • इससे पूर्व महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिये 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, 1942 में ‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये ‘द्विवेदी पदक’ प्राप्त हुए। ‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिये उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।[१७] वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं। [१८]
  • 1968 में सुप्रसिद्ध भारतीय फ़िल्मकार मृणाल सेन[1] ने उनके संस्मरण ‘वह चीनी भाई’[१९] पर एक बांग्ला फिल्म का निर्माण किया था जिसका नाम था नील आकाशेर नीचे।[२०]
  • 16 सितंबर 1991 को भारत सरकार के डाकतार विभाग ने जयशंकर प्रसाद के साथ उनके सम्मान में 2 रुपए का एक युगल टिकट भी जारी किया है।[२१]

[बदलें] यह भी देखें

[बदलें] टीका-टिप्पणी

   क.    ^  छायावाद के अन्य तीन स्तंभ हैं, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत

   ख.    ^  हिंदी के विशाल मंदिर की वीणापाणी, स्फूर्ति चेतना रचना की प्रतिमा कल्याणी ―निराला

   ग.    ^  उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी को कोमलता और मधुरता से संसिक्त कर सहज मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति का द्वार खोला, विरह को दीपशिखा का गौरव दिया और व्यष्टि मूलक मानवतावादी काव्य के चिंतन को प्रतिष्ठापित किया। उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। ―निशा सहगल[२२]

   घ.    ^  “इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी हैं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक ये वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।” ―आचार्य रामचंद्र शुक्ल

   ङ.    ^  “महादेवी का ‘मैं’ संदर्भ भेद से सबका नाम है।” सच्चाई यह है कि महादेवी व्यष्टि से समष्टि की ओर जाती हैं। उनकी पीड़ा, वेदना, करुणा और दुखवाद में विश्व की कल्याण कामना निहित है। ―हजारी प्रसाद द्विवेदी

   च.    ^  वस्तुत: महादेवी की अनुभूति और सृजन का केंद्र आँसू नहीं आग है। जो दृश्य है वह अन्तिम सत्य नहीं है, जो अदृश्य है वह मूल या प्रेरक सत्य है। महादेवी लिखती हैं: “आग हूँ जिससे ढुलकते बिन्दु हिमजल के”, और भी स्पष्टता की माँग हो तो ये पंक्तियाँ देखें: मेरे निश्वासों में बहती रहती झंझावात/आँसू में दिनरात प्रलय के घन करते उत्पात/कसक में विद्युत अंतर्धान। ये आँसू सहज सरल वेदना के आँसू नहीं हैं, इनके पीछे जाने कितनी आग, झंझावात प्रलय-मेघ का विद्युत-गर्जन, विद्रोह छिपा है। ―प्रभाकर श्रोत्रिय[२३]

[बदलें] संदर्भ

[बदलें] टीका-टिप्पणी

  1. (1985/धीरेन्द्र वर्मा) हिन्दी साहित्य कोश, भाग प्रथम। वाराणसी: ज्ञानमंडल लिमिटेड। अभिगमन तिथि: 28 मार्च, 2007
  2. Mahadevi Verma: Modern Meera (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। लिटररी इंडिया। अभिगमन तिथि: 3 मार्च, 2007
  3. गद्यकार महादेवी वर्मा (एचटीएमएल)। ताप्तीलोक। अभिगमन तिथि: 26 मार्च, 2007
  4. ४.० ४.१ ४.२ सिंह, डॉ० राजकुमार। विचार विमर्श — महादेवी वर्मा: जन्म, शैशवावस्था एवं बाल्यावस्था। अभिगमन तिथि: 28 मार्च, 2007
  5. ५.० ५.१ पांडेय, गंगाप्रसाद (1968)। महाप्राण निराला। इलाहाबाद: लोकभारती प्रकाशन। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  6. जो रेखाएँ कह न सकेंगी (हिन्दी) (एचटीएम)। अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  7. महाकवि का बजट (हिन्दी)नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  8. (मई 1933) सुधा (मासिक पत्रिका)। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  9. (मई 1933) चाँद (मासिक पत्रिका)। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  10. Mahadevi Verma (अंग्रेज़ी) (एचटीएम)। सॉनेट। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  11. Famous Personalities Mahadevi Verma (अंग्रेज़ी) (एएसपीएक्स)। कुमाऊँ मंडल विकास निगम लिमिटेड। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  12. Forging a Feminist Path (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। इंडिया टुगेदर। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  13. Mahadevi Verma (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। वुमनअनलिमिटड। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  14. Mahadevi Verma (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। वॉम्पो - वुमंस पॉयट्री लिस्टसर्व। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  15. महादेवी का सर्जन : प्रतिरोध और करुणा (एचटीएमएल)। तद्भव। अभिगमन तिथि: 26 मार्च, 2007
  16. Conferment of Sahitya Akademi Fellowship (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। साहित्य अकैडमी। अभिगमन तिथि: 3 मार्च, 2007
  17. Jnanpith Award (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। वेबइंडिया। अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2007
  18. गुप्ता, इंदिरा (2004)। India’s 50 Most Illustrious Women (अंग्रेज़ी)। आइकॉन बुक्स। अभिगमन तिथि: 30 मार्च, 2007
  19. वह चीनी भाई (एचटीएमएल)। अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 26 मार्च, 2007
  20. नील आकाशेर नीचे (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। मृणाल सेन। अभिगमन तिथि: 26 मार्च, 2007
  21. गद्यकार महादेवी वर्मा (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। इंडियनपोस्ट। अभिगमन तिथि: 26 मार्च, 2007
  22. हिन्दी की सरस्वतीः महादेवी वर्मा (एचटीएमएल)। सृजनगाथा। अभिगमन तिथि: 25 मार्च, 2007
  23. महादेवी: आँसू नहीं आग है (एचटीएमएल)। जागरण। अभिगमन तिथि: 26 मार्च, 2007

[बदलें] ग्रन्थसूची

  • (1985/धीरेन्द्र वर्मा) हिन्दी साहित्य कोश, भाग प्रथम और दो। वाराणसी: ज्ञानमंडल लिमिटेड।
  • रमेश, चंद्र शाह। छायावाद की प्रासंगिकता
  • सिंह, नामवर (2004)। छायावाद। नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन।
  • शोमर, करीन (2004)। Mahadevi Verma and Chhayavad age of Modern Hindi Poetry। ऑक्सफ़र्ड इंडिया पेपरबैक्स। ISBN 978-0195644500
  • वाजपायी, अशोक (2004)। अधुनिक कवि, भाग 1
  • सिंह, डॉ० राजकुमार। विचार विमर्श
  • पांडेय, गंगाप्रसाद। महीयसी महादेवी
  • महादेवी, वर्मा। अतीत के चलचित्र। नई दिल्ली: राधाकृष्ण प्रकाशन।
  • पांडेय, गंगाप्रसाद (1968)। महाप्राण निराला। इलाहाबाद: लोकभारती प्रकाशन।

[बदलें] बाहरी कड़ियाँ



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