भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत की राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय कर्नाटक प्रान्त की राजधानी बंगलोर में है। संस्थान में लगभग सत्रह हजार कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। संस्थान का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष संबधी तकनीक उपलब्ध करवाना है। इसरो के वर्तमान निदेशक जी माधवन नायर हैं। आज भारत न सिर्फ अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है बल्कि दुनिया के बहुत से देशों को अपनी अंतरिक्ष क्षम्ता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा है।
अनुक्रमणिका |
[बदलें] इतिहास
इसरो की स्थापना १९६९ में भारत के प्रमाणु उर्जा विभाग द्वारा की गयी थी। इसरो के पहले उपग्रह का प्रक्षेपण १९७५ में सोवियत संघ से हुआ था लेकिन पूरी तरह पहला स्वदेशी प्रक्षेपण १९८० में हुआ था। तब से अब तक इसरो ने बहुत सी मह्त्वपूर्ण सफलताएँ हासिल की हैं।
[बदलें] महत्वपूर्ण लम्हे
- १९६२: परमाणु उर्जा विभाग द्वारा अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये एक राष्ट्रीय समिति का गठन, और त्रिवेन्द्रम के समीप थुम्बा में राकेट प्रक्षेपण स्थल के विकास की दिशा में पहला प्रयास प्रारंभ।
- १९६३: थुंबा से (21 नवंबर, 1963)को पहले राकेट का प्रक्षेपण
- १९६५: थुंबा में अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी केन्द्र की स्थापना।
- १९६७: अहमदाबाद में उपग्रह संचार प्रणाली केन्द्र की स्थापना।
- १९७२: अंतरिक्ष आयोग एवं अंतरिक्ष विभाग की स्थाप्ना।
- १९७५: पहले भारतीय उपग्रह आर्यभट्टका (April 19, 1975)को प्रक्षेपण ।
- १९७६: उपग्रह के माध्यम से पहली बार शिक्षा देने के लिये प्रायोगिक कदम ।
- १९७९: एक प्रायोगिक उपग्रह भाष्कर-1 का प्रक्षेपण। रोहिणी उपग्रह का पहले प्रायोगिक परीक्षण यान एस एल वी-3 की सहायता से प्रक्षेपण असफल ।
- १९८०: एस एल वी-3 की सहायता से रोहिणी उपग्रह का सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापन ।
- १९८१: एप्पल नामक भूवैज्ञानिक संचार उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण्। नवंबर में भाष्कर-2 का प्रक्षेपण ।
- १९८२: इन्सैट-1A का अप्रैल में प्रक्षेपण और सितंबर अक्रियकरण ।
- १९८३: एस एल वी-3 का दूसरा प्रक्षेपण । आर एस - डी2 की कक्षा में स्थापना । इन्सैट-1B का प्रक्षेपण ।
- १९८४: भारत और सोवियत संघ द्वारा संयुक्त अंतरिक्ष अभियान में राकेश शर्मा का पहला भारतीय अंतरिक्ष यात्री बनना ।
- १९८७: ए एस एल वी का SROSS-1 उपग्रह के साथ प्रक्षेपण ।
- १९८८: भारत का पहला दूर संवेदी उपग्रह आई आर एस-1A का प्रक्षेपण. इन्सैट-1C का जुलाई में प्रक्षेपण । नवंबर में परित्याग ।
- १९९०: इन्सैट-1D का सफल प्रक्षेपण ।
- १९९१: अगस्त में दूसरा दूर संवेदी उपग्रह आई आर एस एस-1B का प्रक्षेपण ।
- १९९२: SROCC-C के साथ ए एस एल वी द्वारा तीसरा प्रक्षेपण मई महीने में । पूरी तरह स्वेदेशी तकनीक से बने उपग्रह इन्सैट-2A का सफल प्रक्षेपण ।
- १९९३: इन्सैट-2B का जुलाईमहीने में सफल प्रक्षेपण । पी एस एल वी द्वारा दूर संवेदी उपग्रह आई आर एस एस-1E का दुर्घटनाग्रस्त होना ।
- १९९४: मईमहीने में एस एस एल वी का चौथा सफल प्रक्षेपण ।
- १९९५: दिसंबर महीने में इन्सैट-2C का प्रक्षेपण । तीसरे दूर संवेदी उपग्रह का सफल प्रक्षेपण ।
- १९९६: तीसरे भारतीय दूर संवेदी उपग्रह आई आर एस एस-P3 का पी एस एल वी की सहायता से मार्च महीने में सफल प्रक्षेपण ।
- १९९७: जून महीने में प्रक्षेपित इन्सैट-2D का अक्टूबर महीने में खराब होना। सितंबर महीने में पी एस एल वी की सहायता से भारतीय दूर संवेदी उपग्रह आई आर एस एस-1D का सफल प्रक्षेपण ।
- १९९९: इन्सैट-2E इन्सैट-2 क्रम के आखिरी उपग्रह का फ्रांस से सफल प्रक्षेपण । भारतीय दूर संवेदी उपग्रह आई आर एस एस-P4 श्रीहरिकोटा परिक्षण केन्द्र से सफल प्रक्षेपण । पहली बार भारत से विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण : दक्षिण कोरिया के किटसैट-3 और जर्मनी के डी सी आर-टूबसैट का सफल परीक्षण । * २०००: इन्सैट-3B का २२ मार्च, २००० को सफल प्रक्षेपण ।
- २००१: जी एस एल वी-D1, का प्रक्षेपण आंशिक सफल ।
- २००२: जनवरी महीने में इन्सैट-3C का सफल प्रक्षेपण ।, पी एस एल वी-C4 द्वारा कल्पना-1 का सितंबर में सफल प्रक्षेपण ।
- २००४: जी एस एल वी एड्यूसैट का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण ।
[बदलें] अमरीकी प्रतिबंध
सोवियत संघ के साथ भारत के बूस्टर तकनीक के क्षेत्र में सहयोग का अमरीका द्वारा परमाणु अप्रसार नीति की आड़ में काफी प्रतिरोध किया गया। 1992 में भारतीय संस्था इसरो और सोवियत संस्था ग्लावकास्मोस पर प्रतिबंध की धमकी दी गयी। इन धमकियों की वजह से सोवियत संघ ने इस सहयोग से अपना हाथ पीछे खींच लिया । सोवियत संघ क्रायोजेनिक लिक्वीड राकेट इंजन तो भारत को देने के लिये तैयार था लेकिन इसके निर्माण से जुड़ी तकनीक देने को तैयार नही हुआ जो भारत सोवियत संघ से खरीदना चाहता था।
इस असहयोग का परिणाम यह हुआ कि भारत अमरीकी प्रतिबंधों का सामना करते हुये भी सोवियत संघ से बेहत स्वदेशी तकनीक दो सालो के अथक शोध के बाद विकसित कर ली। हलाकि इसरो में अभी भी रूसी इंजनो का प्रयोग जारी है किन्तु इसे चरणबद्ध तरीके से स्वदेशी तकनीक से चरणों में बदला जा रहा है।
[बदलें] इसरो के उपग्रह
[बदलें] इन्सैट
[बदलें] आई आर एस
[बदलें] प्रक्षेपण यान
[बदलें] यह भी देखें
- चंद्रयान
[बदलें] बाहरी कड़ियाँ
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