भक्तामर स्तोत्र
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
भक्तामर स्तोत्र का जैन धर्म में बडा महत्व है| आचार्य मानतुंग का लिखा भक्तामर स्तोत्र सभी जैन परंपराओं में सबसे लोकप्रिय संस्कृत प्रार्थना है|
इस स्तोत्र के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं||
श्री भक्तामर स्त्रोत [ वसंततिलका छन्द ]
।। १ ।। भक्तामर प्रणत मौलिमणि प्रभाणा मुद्द्दोतकं दलित पाप तमोवितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिनपादयुगं युगादा वालम्बनं भवजले पततां जनानाम् ।।
।। २ ।। यः संस्तुतः सकल वाङ्मयतत्वबोधा दुद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोक नाथैः । स्तोत्रैर् जगत्त्रितयचित्तरैरुदारैः स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ।।
।। ३ ।। बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चिचपादपीठ स्तोतुं समुद्यत-मतिर् विगत-त्रपोऽहम् । बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्ब मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहितुम् ।।
।। ४ ।। वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र ! शशांककानतान् कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोपि बुद्दया | कल्पान्त - काल - पवनोध्दत - नक्रचक्रं को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ||
।। ५ ।। सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश ! कर्तुस्तवं विगतशक्तिरपि प्रव्रत्तः | प्रीत्याऽऽत्मवीर्यमविचार्य मृगी मृगेन्द्रं नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ||
।। ६ ।। अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहारधाम त्वद्भक्तरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् | यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति तच्चारु - चाम्र - कलिका निकरैकहेतु ||
।। ७ ।। त्वत्संस्तवेन भवसंतति - सन्निबद्धं पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् | आक्रान्त - लोकमलिनीलमशेषमाशु सूर्याशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ||
[बदलें] बाह्य कडियां
ये लेख अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है, यानि कि एक आधार है। आप इसे बढाकर विकिपीडिया की मदद कर सकते है।