रामधारी सिंह दिनकर
From Wikipedia
रामधारी सिंह दिनकर (१९०८-१९७४)
रामधारी सिंह दिनकर स्वतंत्रता पूर्व के विद्रोही किवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने जाते रहे। वे छायावादोत्तर किवयों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी किवताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रांति की पुकार है, तो दूसरी ओर कोमल श्रृँगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें कुरूक्षेत्र और उवर्शी में मिलता है।
आपका जन्म ३० सितंबर १९०८ को सिमरिया, मुंगेर, बिहार में हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. की परीक्षा उत्तीण करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक हो गए। १९३४ से १९४७ तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रिजस्टरार और प्रचार विभाग के उपिनदेशक पदों पर कार्य किया। १९५० से १९५२ तक मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपित के पद पर कार्य किया और इसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने।
आपको भारत सरकार की उपाधि पदमविभूषण से अलंकृत किया गया। आपकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिये आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कर प्रदान किये गए।
२४ अप्रैल १९७४ को दिनकर जी का स्वर्गवास हुआ। अपनी लेखनी के माध्यम से वह सदा अमर रहेंगे।
प्रमुख कृतियां:
गद्य रचनाएं: मिट्टी की ओर, रेती के फूल, वेणुवन, साहित्यमुखी, काव्य की भूमिका, प्रसाद पंत और मैथिलीशरणगुप्त, संस्कृति के चार अध्याय। पद्य रचनाएं: रेणुका, हुंकार, रसवंती, कुरूक्षेत्र, रिश्मरथी, परशुराम की प्रतिज्ञा, उर्वशी, हारे को हिरनाम।