चिंता
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एक कहावत है कि जब मन आशंकाओं से घिर जाता है,और पीछे की बातें सोचकर दिमाग आगे की कल्पना करने लगता है,तो दिमाग एक ही पहलू पर टिक जाता है,और इस दिमागी टिकाव का कारण ही भविष्य के प्रति चिंता वाली बात कही जाती है
[संपादित करें] चिंता के कारण
मनुष्य शरीर सोच सकता है,सोच दो प्रकार की होती है,एक सकारात्मक सोच और दूसरी होती है नकारात्मक सोच,जब किसी कारण को किसी प्रकार की कमजोरी से प्राप्त नही किया जा सके तो नकारात्मक सोच कहलाती है,और जो किसी भविष्य में होने वाली प्रिय या अप्रिय बात के प्रति सोच की जाती है,उसमे भविष्य के प्रति कल्पना की जाती है.