भरतपुर
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भरतपुर राजस्थान प्रान्त का एक नगर है। यह नामकरण राम के भाई भरत के नाम पर किया गया है। लक्ष्मण इस राज परिवार के कुलदेव माने गये हैं। इसके पूर्व यह जगह सोगडिया जाट सरदार रुस्तम के अधिकार में था जिसको महाराजा सूरज मल ने जीता और 1733 में भरतपुर नगर की नींव डाली।
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[संपादित करें] भरतपुर राज्य
भरतपुर नाम से यह एक स्वतन्त्र राज्य भी था जिसकी नींव महाराजा सूरज मल ने डाली। महाराजा सूरज मल के समय भरतपुर राज्य की सीमा आगरा, धोलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, इटावा, मेरठ, रोहतक, फर्रुखनगर, मेवात, रेवाड़ी, गुड़गांव, तथा मथुरा तक के विस्तृत भू-भाग पर फैली हुई थी।
[संपादित करें] महाराजाओं की सूची
- गोकुला, ? - 1670
- राजाराम (भरतपुर), 1670 - 1688
- चूडामन, 1695 - 1721
- बदन सिंह, 1722 - 1756
- महाराजा सूरज मल, 1756 - 1767
- महाराजा जवाहर सिंह, 1767 - 1768
- महाराजा रतन सिंह, 1768 - 1769
- महाराजा केहरी सिंह, 1769 - 1771
- महाराजा नवल सिंह, 1771 - 1776
- महाराजा रञ्जीत सिंह, 1776 - 1805
- महाराजा रणधीर सिंह, 1805 - 1823
- महाराजा बलदेव सिंह, 1823 - 1825
- महाराजा बलवन्त सिंह, 1825 - 1853
- महाराजा जशवन्त सिंह, 1853 - 1893
- महाराजा राम सिंह, 1893 - 1900 (Exiled)
- महारानी गिरिराज कौर, regent 1900-1918
- महाराजा किशन सिंह, 1900 - 1929
- महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह, 1929-1947 (Joined the Indian Union)
[संपादित करें] पक्षी विहार एवं केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान
भरतपुर अपने पक्षी विहार केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान - एशिया में पक्षियों के ,समूह प्रजातियों वाला सर्वश्रेष्ठ उद्यान है, के लिए प्रसिद्ध है। भरतपुर की गर्म जलवायु में सर्दियां बिताने प्रत्येक वर्ष साइबेरिया के दुर्लभ सारस यहाँ आते है।
एक समय में भरतपुर के राजकुंवरों की शाही शिकारगाह रहा यह उद्यान विश्व के उत्तम पक्षी विहारों में से एक है जिसमें पानी वाले पक्षियों की चार सौ से अधिक प्रजातियों की भरमार है। गर्म तापमान में सर्दियां बिताने अफगानिस्तान, मध्य एशिया, तिब्बत से प्रवासी चिड़ियों की मोहक किस्में तथा आर्कटिक से साइबेरियन , साइबेरिया से भूरे पैरों वाले हंस और चीन से धारीदार सिर वाले हंस जुलाई-अगस्त में आते हैं और अक्टूबर - नबम्बर तक उनका प्रवास काल रहता है।
उद्यान के चारों ओर जलकौवों, स्पूनबिल, लकलक बगुलों, जलसिंह इबिस और भूरे बगूलों का समूह देखा जा सकता है।
[संपादित करें] भरतपुर के ऐतिहासिक स्थल
महलः - शाही अतीत के अवशेषों में से शानदार भरतपुर महल बचा है जिसमें बड़ी सख्या में आरम्भिक पंद्रहवी सदी की पुरानी वस्तुओं का समृद्ध भण्डार है। यह शाही इमारत मुगल व राजस्थानी वास्तुकला शैली का समन्वय है जिसमें भव्य कक्ष और परिष्कृत आकृतियों वाले बारीक डिजाइन की फर्श की टाइलें है । महल के मध्य हिस्से में प्रदर्शित प्राचीन वस्तुओं के देखकर कोई भी अचम्भे में पड़ सकता है।
लोहागढ़ दुर्गः अठारहवीं सदी के आरंभ में बनी यह लोहे की भीमकाय इमारत है। अपनी अजय मोर्चाबन्दी के कारण अंग्रेजों के अनेक हमलो के बावजूद यह बची रही। भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल द्वारा इस दुर्ग की कल्पना व रूपरेखा निर्धारित कि गई थी। दुर्ग में तीन महल है - किशोरी महल, महल खास, कोठी खास।
राजकीय संग्रहालयः महल में स्थित सरकारी संग्रहालय में संग्रहीत शिल्प तथ्यों, उत्कृष्ट ढंग से नक्काशीदार मूर्तियाँ और शिलालेखों का समृद्ध भंडार है। यह सब वस्तुएं प्रदेश की परम्परा, कला व समृद्ध शिल्प के बारे में बताती हैं।
जवाहर बुर्ज और फतेज बुर्जः दुर्ग के परकोटे के भीतर अभी भी आठ मध्य बुर्ज में से कुछ खड़े हैं। विशेषकर उनमें से दो जवाहर बुर्ज और फतेज बुर्ज विशेष रूचि के है। मुगलों व अग्रेजों पर अपनी विजय का जश्न मनाने के लिए इनका निर्माण महाराजा सूरजमल ने करवाया था। भरतपुर के जाट शासकों का राज्याभिषेक समारोह भी जवाहर बुर्ज पर होता था।
''''डीग के जलमहल -डीग भरतपुर के पश्चिम में स्थित डीग जाट राजाओं की विराशत और राजधानी रहा है, भरतपुर से डीग की दूरी 34 कि.मी. हैा डीग के जलमहलों का निर्माण 1725 ई.वी. में महाराजा बदन सिंह द्वारा करवाया गया ा डीग के जलमहल विश्व प्रशिद्व है तथा इसे जलमहलों की नगरी भी कहा जाता हैा जलमहल मुगल स्थापित्य कला तथा रजवाडी कला का एक अनुपम नमूना है इसके दोनों ओर सरोवर बने हूये है, जो महल की शीतलता के साथ शोभा बडाते है '(तलवार सिंह, बहताना-डीग)