बाबा आमटे

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बाबा आमटे : सच्चे कुष्ठरोगीसेवी

   कौन नहीं जानता सच्चे कुष्ठरोगीसेवी बाबा आमटे को ? बाबा आमटे का पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे है । इनका जन्म २६ दिसम्बर १९१४ को महाराष्ट्र के चन्द्रपुर जनपद के वरोरा नामक कस्बे में एक धनी परिवार में हुआ था । इनके पिता देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में थे । इनका बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता । प्रत्येक चुनौती को स्वीकार करने वाले बाबा आमटे बचपन से ही साहसी और निर्भय हैं । कितने ही रोगियों के पतझड़-जीवन में सावन की समा घोलनेवाले, खुशहाली रूपी सुगंध से उनके जीवन को गमकानेवाले बाबा आमटे आज भी अपने कर्तव्य-पथ पर एक अथक और कर्मवीर योद्धा की भाँति अग्रसर हैं ।
   सर्वदा विविध ग्रन्थों का अध्ययन करते रहनेवाले बाबा आमटे ने एम.ए. ,एल.एल.बी. तक की पढ़ाई की। महात्मा गाँधी और विनोबा भावे से प्रभावित बाबा आमटे ने सारे भारत का दर्शन किया है और इस दर्शन के दौरान उन्हें गरीबी, अन्याय आदि के भी दर्शन हुए और इन समस्याओं को दूर करने की अपराजेय ललक रूपी जलधि इनके हृदय में हिचकोरे लेने लगा ।
   एक दिन बाबा आमटे ने देखा कि एक कोढ़ी धुआँधार बारिश में भींग रहा है और उसकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है । बाबा आमटे ने सोंचा कि अगर इसकी जगह मैं होता तो ? बाबा आमटे का हृदय द्रवित हो गया और उनके नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी । इस प्रसंग ने बाबा आमटे को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने ऐसे लोगों की सेवा का कठिन व्रत ले लिया । बाबा आमटे ने उस रोगी को उठाया और अपने घर की ओर चल दिए । इसके बाद बाबा आमटे ने कुष्ठरोग संबंधी सारा ज्ञान प्राप्त किया और बरोरा के पास घने जंगल में अपनी सहधर्मिणी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ "आनन्दवन" की स्थापना की । बाबा आमटे और उनके सहयोगियों के कठिन श्रम से इस घने जंगल में मंगल होने लगा। जमीन को समतल और उपजाऊँ बनाया गया, कुएँ खोदे गए, पेड़ लगाए गए, बीज बोए गए और कुष्ठरोगियों के हृदय में भी खुशहाल जीवन की आशा पनपाई गई।
   "आनन्दवन" की महत्ता चारोंतरफ फैलने लगी, नए-नए रोगी आने लगे और "आनन्दवन" का महामंत्र 'श्रम ही है श्रीराम हमारा' सर्वत्र गूँजने लगा ।
   आज "आनन्दवन" में स्वस्थ, आनन्दमयी और कर्मयोगियों की एक बस्ती बस गई है । भीख माँगनेवाले हाथ श्रम करके पसीने की कमाई उपजाने लगे हैं । किसी समय १४ रुपये में शुरु हुआ "आनन्दवन" का बजट आज करोड़ों में है । आज १८० हेक्टेयर जमीन पर फैला "आनन्दवन" अपनी आवश्यकता की हर वस्तु स्वयं पैदा कर रहा है ।
   बाबा आमटे ने "आनन्दवन" के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहाँ हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है ।
   बाबा आमटे की कुछ साहित्यिक रचनाएँ भी हैं, जैसे - 'ज्वाला आणि फुले' नामक काव्यसंग्रह, 'उज्ज्वल उद्यासाठी' नामक काव्य इत्यादि ।
   बाबा आमटे को उनके इन महान कार्यों के लिए बहुत सारे पुरस्कार भी दिए गए हैं, जैसे - १९५८ में रैमन मैगसेसे पुरस्कार, १९८६ में पद्मविभषूण तथा पहला जी. डी. बिरला पुरस्कार, १९८८ में मानवीय हक पुरस्कार, १९९९ में महात्मा गाँधी पुरस्कार के साथ-साथ और भी कई पुरस्कार ।
   सच्चे अर्थों में बाबा आमटे एक सच्चे समाज हितैषी, कर्मयोगी और ईश्वर के सच्चे पुत्र हैं ।
   इस महापुरुष को मैं शत-शत नमन, वंदन करते हुए बस एक और पंक्ति इस लेख में जोड़ना चाहूँगा, "अभावग्रस्तों की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है ।" 

साभार- http://prabhakargopalpuriya.blogspot.com