फलज्योतिष
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
फलज्योतिष astrology का भारत की परम्परा में नाम है।
अनुक्रमणिका |
[संपादित करें] भारतीय फल ज्योतिष
भारतीय फल ज्योतिष में अनेक शाखायें और उपशाखायें हैं
- सामुद्रिक शास्त्र
- हस्तरेखा विज्ञान
- वास्तु शास्त्र
- हस्त लेख विज्ञान
- छाया विज्ञान
- कुण्डली विज्ञान
- अतीन्द्रिय ज्ञान
ज्योतिष में मुख्यत: दो पद्धतियों के सहारे समस्त फल कथन किया जाता है । प्रथमत: गणित और उसके बाद फलित कथन किया जाता है ।
[संपादित करें] भारतीय फल ज्योतिष में प्रमुख परिभाषायें और शब्दावली
[संपादित करें] जन्मकुण्डली
किसी मनुष्य की जन्म कुण्डली एक कम्प्यूटर सीडी की भांति अनेक सूचनाओं और जानकारीयों कों सूक्ष्म रूप में समाहित किये अनेक गणितीय गणनाओं, आंकड़ो तथा फलित को अपने आप में समेटे हुये होती है । एक विद्वान ज्योतिषी उसे डिकोड कर उसका पहले समुचित विस्तार करता है फिर उसका उचित गणितीय परिकलन कर उपयुक्त फल कथन करता है।
[संपादित करें] जन्म कुण्डली के घटक
जन्म कुण्डली के निम्न घटक हैं
- भाव: जन्म कुण्डली में 12 भाव होते हैं, जिन्हें क्रमश: प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि नाम से पुकारा जाता है । प्रत्येक भाव एक विशिष्ट गुण व उद्देश्य अपने आप में समाहित करता है । भावों के उद्देश्य प्रथम भाव : इसे लग्न भाव भी कहते हैं । इससे मनुष्य का शारीरिक गठन, रूप, रंग, कुल, खानदान, निज आदतें, स्वभाव, प्रकृति, आदि देखी जाती है ।
- ग्रह: जन्मकुण्डली में ग्रहों की संख्या के विषय में तीन मत प्रमुख है - अ. पहला मत अति प्राचीन है और भृगु संहिता जैसे ग्रंथ इस पर आधारित हैं । इस मत में केवल सात ग्रहों को मान्य किया गया है । इसमें राहु और केतु वर्णित नहीं हैं । वृहज्जातक नामक प्रसिद्ध ग्रंथ भी इन्हीं सात ग्रहों को मान्य करता है । ब. द्वितीय मत किंचित आधुनिक है और इसमें नौ ग्रहों को मान्यता दी गयी है । इसमें राहु और केतु शामिल किये गये हैं । प्रसिद्ध ग्रंथ लाल किताब व रावण संहिता सहित भारत के अधिकांश ग्रंथ इसी सिद्धान्त पर आधारित होकर लिखे गये हैं ।स. तृतीय मत अत्याधुनिक एवं अति वैज्ञानिक है । इसमें प्लूटो, यूरेनस और नेपच्यून को भी शामिल किया गया है । इस प्रकार के ज्योतिष ग्रंथ 12 ग्रहों को लेकर लिखे गये हैं ।
- अंश विभाजन : अंश विभाजन करना जन्म कुण्डली को विभिन्न पद्धतियों में वर्गीकृत करने और फलादेश करने के लिये सूत्र बद्ध करने का गणितीय तरीका है ।
- जन्म कुण्डली का चौथा मुख्य भाग सूत्र संस्कार है । और इसमें अवकहड़ा, घात चक्र आदि अनेक प्रारंभिक व निपादित आंकड़े आते हैं ।
फल ज्योतिष की भारतीय पद्धतियां और प्रणाली : भारतीय ज्योतिष के मूल पर विचार करें तो यह समझना व जानना अत्यंत सरल हो जायेगा कि फल ज्योतिष में कितनी सच्चाई है । और भारतीय ज्योतिष की यह विशेषता है कि इसमें यह जान पाना आसान है कि फलित कितना सही है अथवा कितना गलत । क्योंकि फल ज्योतिष में उत्तम फलित साधन के लिये उत्तम गणित व आकलन के साथ अभ्यास साधना और अतीन्द्रीय ज्ञान विशेष आवश्यक है । अन्यथा कभी भी फलित सटीक नहीं बैठता ।
फल ज्योतिष में कुण्डली क्रम का सूक्ष्म अध्ययन करने पर यदि ज्योतिष का अच्छा जानकार ज्योतिषी होगा तो पूर्व जन्म अर्थात पिछले जन्म का हाल बता देगा । पिछले जन्म का हाल जानने के लिये ज्योतिषी नक्षत्र काल गुजरने यानि नक्षत्र के किस चरण या अंश पर जन्म हुआ है इसे आधार मानते हैं । इसमें नक्षत्र का गुजरा समय विंशोत्तरी दशा का भुक्त काल माना जाता है और शेष बचे समय को भोग्य काल कहा जाता है । नक्षत्र की गुजरी अवधि बालक की माँ के गर्भ में गुजारी गयी अवधि की गणना बताती है, तथा इससे पूर्व की अवधि की गणना करते ही पिछले जन्म का विवरण प्राप्त होना प्रारंभ हो जाता है । ...