पूजा की थाली

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पूजा की थाली वह बड़ी तश्तरी या ट्रे होती है जिसमें पूजा की सामग्री रखी जाती है।[१] भारतीय पर्वों, उत्सवों, परंपराओं और संस्कारों में पूजा की थाली का विशेष महत्व है।[२] पूजा की थाली कोई सामान्य थाली भी हो सकती है, कोई कलात्मक थाली भी और कोई हीरे मोती की थाली भी।[३] थाली कितनी सजी और कितनी मँहगी हो यह उत्सव के आयोजन की भव्यता और आयोजक की आर्थिक परिस्थिति पर निर्भर करता है लेकिन इसमें रखी गई वस्तुएँ जिन्हें पूजा सामग्री कहते हैं, लगभग एक सी होती हैं।

अनुक्रमणिका

[संपादित करें] पूजा सामग्री

पूजा की थाली
पूजा की थाली

पूजा की थाली में निम्नलिखित वस्तुएँ अवश्य होती हैं-

  • टीके के लिए रोली या हल्दी
  • अक्षत (बिना टूटे हुए साबुत चावल)
  • दीपक
  • नारियल
  • फूल
  • न्यौछावर के पैसे
  • प्रसाद के लिए मिष्ठान्न
  • किसी पात्र में जल

इसके अतिरिक्त घंटी, शंख, छोटा सा पानी का कलश, मौली या कलावा, धूप, अगरबत्ती, कपूर, पान, चंदन, फल, मेवे, भगवान की मूर्ति और सोने व चाँदी के सिक्के भी परंपरा या आवश्यकतानुसार थाली में रखे जाते हैं। [४] अगर दीपावली हो तो इसमें एक से अधिक दीपक हो सकते हैं, रक्षाबंधन के अवसर पर इसमें राखी भी होती है और शिवरात्रि के अवसर पर बेलपत्र और धतूरा[५]। इसी प्रकार भिन्न भिन्न अवसरों पर पूजा की थाली के सामान में थोड़ी बहुत भिन्नता होती है।

[संपादित करें] परंपरा

इसी थाली में दीपक जला कर देवता की आरती भी करते हैं। रक्षाबंधन के पर्व पर बहन भाई की आरती करती है, विवाह में द्वाराचार के समय इसी थाली से वर की आरती होती है और ससुराल आगमन पर पूजा की थाली से ही आरती कर के वधू का स्वागत किया जाता है।[६] शास्त्र की दृष्टि से देखें तो पंचभूत तत्वों से ही सृष्टि की सभी प्रक्रियाएं चलती हैं और आरती में भी यही पंचभूत तत्व रखे जाते हैं। आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। मान्यता है आत्मा से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी उत्पन्न हुई है। जिस क्रम से यह पांच तत्व उत्पन्न होते हैं। ठीक उसी क्रम से एक-दूसरे में विलीन होते-होते परमात्मा में समा भी जाते है। आरती को जब हम अपने इष्टदेव के सम्मुख अर्पित करते हैं तो उत्पन्न और प्रभु में समा जाने वाली, दोनों ही क्रियाओं की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते हैं-पहली, पूजा-पाठ के द्वारा अपने अभीष्ट की सिद्धि व प्राप्ति और दूसरी जीवन अंत के पश्चात प्रभुपाद की प्राप्ति। [७] सत्यनारायण की कथा या अन्य सामूहिक धार्मिक अवसरों पर आरती के बाद पूजा की थाली को भक्तों के बीच ले जाते हैं। भक्त आरती लेते हैं और दक्षिणा का धन इसी थाली में रख देते हैं। मंदिरों में दर्शन के लिए जाते समय भी पूजा थाली को प्रयोग होता है। कुछ मंदिरों के बाहर दर्शन के लिए तैयार पूजा थालियाँ मिलती हैं जो पत्तों या बाँस की बनी होती हैं।

पूजा की थाली की सजावट को एक कला समझा जाता है। [८] आजकल विभिन्न पर्वों के लिए पहले से तैयार कलात्मक पूजा थालियाँ बाज़ार में मिलने लगी है।[९][१०]

[संपादित करें] संदर्भ

  1. दिवाली पूजा थाली।accessmonthday=1 अगस्त (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। फ़ेस्टिवल्स आई लव इंडिया.कॉम।
  2. दिवाली पूजा थाली।accessmonthday=1 अगस्त (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। डीग्रीटिंग्स.कॉम।
  3. Devotion Puja Thali ।accessmonthday=1 अगस्त (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। ताजऑनलाइन.टोलशॉप.कॉम।
  4. दिवाली पूजा थाली (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। फ़ेस्टिवल्स.आईलवइंडिया.कॉम। अभिगमन तिथि: 1 अगस्त, 2007
  5. गूंज उठा 'हर-हर महादेव' (एचटीएमएल)। दैनिक भास्कर.कॉम। अभिगमन तिथि: 24 अगस्त, 2007
  6. स्वागत नववधू का हर प्रदेश का तरीका अलग-अलग। accessmonthday=1 अगस्त (एएसपीएक्स)। जागरण.कॉम।
  7. पूजा का पूरा फल देती है।accessmonthday=24 अगस्त (एएसपी)। अमर उजाला।
  8. Karwa Chauth Thali Decoration Ideas।accessmonthday=1 अगस्त (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। करवाचौथ.कॉम।
  9. दिवाली पूजा थाली।accessmonthday=1 अगस्त (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। दिवाली-पूजा-थाली.कॉम।
  10. राखी विथ पूजा थाली।accessmonthday=1 अगस्त (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल)। राखी.इंडियनगिफ़्टपोर्टल.कॉम।

[संपादित करें] बाहरी कड़ियाँ