कामसूत्र

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कामसूत्र महर्षि वात्सायन द्वारा लिखा गया भारत का एक प्राचीन कामशास्त्र (en:Sexology) ग्रंथ है। दुनिया भर में यौन बिमारीयों और एड्स के बढते चलन के कारण इस प्राचीन पुस्तक पर लोगों का खूब ध्यान गया है[तथ्य चाहिए]। खास कर पश्चिम के देशों में यह काफी लोकप्रिय हुआ है और इसे लोगों की उत्सुकता बढी है[तथ्य चाहिए]। कामसूत्र को उसके विभिन्न आसनों के लिए ही जाना जाता है.

महर्षि वात्स्यायन का कामसूत्र विश्व की प्रथम यौन संहिता है[तथ्य चाहिए] जिसमें यौन प्रेम के मनोशारीरिक सिद्धान्तों तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है। अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है। अधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि का काल निर्धारण नहीं हो पाया है। परन्तु अनेक विद्वानों तथा शोधकर्ताओं के अनुसार महर्षि ने अपने विश्वविख्यात ग्रन्थ कामसूत्र की रचना ईसा की तृतीय शताब्दी के मध्य में की होगी[तथ्य चाहिए]। तदनुसार विगत सत्रह शताब्दिओं से कामसूत्र का वर्चस्व समस्त संसार में छाया रहा है और आज भी कायम है[तथ्य चाहिए]। संसार की हर भाषा में इस ग्रन्थ का अनुवाद हो चुका है[तथ्य चाहिए]। इसके अनेक भाष्य एवं संस्करण भी प्रकाशित हो चुके हैं। वैसे इस ग्रन्थ के जंगमंगला भाष्य को ही प्रमाणिक माना गया है[तथ्य चाहिए]। कोई दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध भाषाविद सर रिचर्ड एफ़ बर्टन (Sir Richard F. Burton) ने जब ब्रिटेन में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद करवाया तो चारों ओर तहलका मच गया[तथ्य चाहिए] और इसकी एक-एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी[तथ्य चाहिए]। अरब के विख्यात कामशास्त्र ‘सुगन्धित बाग’ (Perfumed Garden) पर भी इस ग्रन्थ की अमिट छाप है[तथ्य चाहिए]

महर्षि के कामसूत्र ने न केवल दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी संपदित किया है। राजस्थान की दुर्लभ यौन चित्रकारी तथा खाजुराहो, कोणार्क आदि की जीवन्त शिल्पकला भी कामसूत्र से अनुप्राणित है। रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र की मननोहारी झांकियां प्रस्तुत की हैं तो गीत गोविन्द के गायक जयदेव ने अपनी लघु पुस्तिका ‘रति-मंजरी’ में कामसूत्र का सार संक्षेप प्रस्तुत कर अपने काव्य कौशल का अद्भुत परिचय दिया है[तथ्य चाहिए]

[संपादित करें] काम की व्याख्या

ग्रंथ मे काम की व्याख्या द्वि-आयामी है। प्रथम सामान्य एवं द्वितीय विशेष। सामान्य के अन्तर्गत पंचेन्द्रिओं द्वारा प्राप्त होने वाले आनन्द एवं रोमांच का समावेश किया गया है जिसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध मन एवं चेतना से जुड़ा हुआ है। इन्हीं के द्वारा मनोशारीरिक क्रिया एवं प्रतिक्रिया का संचालन होता है।

विशेष के अन्तर्गत स्पर्शेन्द्रिओं की भूमिका प्रतिपादित की गई है। शिश्न और योनि अत्यन्त संवेदनशील स्पर्शेन्द्रिआं हैं। इन्हीं का पारस्परिक मिलन एवं घर्षण सम्भोग है जिसकी अन्तिम परिणति चरमोत्कर्ष (Climax) एवं स्खलन (Ejaculation) में होती है।

[संपादित करें] दाम्पत्य

कामसूत्र ने दाम्पत्य उल्लास एवं संतृप्ति के लिए यौन-क्रीड़ा को आधार माना है। दाम्पत्य जीवन में उल्लास एवं उमंग का संचार तभी होता है जब पति पत्नी दोनों में मानसिक तालमेल हो, दोनों एक दूसरे के परिपूरक बनने का प्रयास करें तथा यौन क्रीड़ा के समय पारस्परिक सहयोग करें और अपने अपने लक्ष्य की ओर आत्मविश्वास के साथ निरन्तर आगे बढ़ते रहें। दाम्पत्य जीवन में सतत रसवर्षा के लिए ही महर्षि ने अपने कामसूत्र में यौन प्रेम के रहस्यों का उद्घाटन किया है[तथ्य चाहिए] एवं यौन क्रीड़ा तथा तकनीक का सूक्ष्म तथा विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है।

काम एक अत्यन्त शक्तिशाली मूल प्रवृत्ति (Instinct) है। काम ही जीवन का संपदन, जीवन का उद्गम, उसके अस्तित्व तथा उसकी गतिशीलता तथा नर-नारी के पारस्परिक अकर्षण एवं सम्मोहन का रहस्य है। वास्तव में काम ही विवाह एवं दाम्पत्य सुख-शांति की आधारशिला है। काम का सम्मोहन ही नर-नारी को वाविह-सूत्र में आबद्ध करता है। अतः विवाहित जीवन में आनन्द की निरन्तर रस-वर्षा करते रहना ही कामसूत्र का वास्तविक उद्देश्य है।