बेऑबॉब

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बेऑबॉब एक बड़ा विचित्र प्रजाति का पेड़ है। इसे लेटिन भाषा में आडन्सोनिया डिजिटाटा और इसे 'द मंकी ट्री', 'द वर्ल्ड ट्री','द क्रीम आफ़ टार्टर ट्री', 'लेमोनेड ट्री','सौर गोर्ड ट्री' के अलावा और भी कई नामों से पुकारा जाता है। अरबी भाषा में इसे 'बु-हिबाब' कहा जाता है जिसका अर्थ है 'कई बीजों वाला पेड़', शायद इसी बु-हिबाब शब्द का अपभ्रंश रूप है बेऑबॉब।

बेऑबॉब का अफ़्रीका के आर्थिक विकास में काफ़ी योगदान होने की वजह से अफ़्रीका ने इसे 'द वर्ल्ड ट्री' की उपाधि भी दी है और संरक्षित वृक्ष के रूप में भी चुना है। अफ़्रीका मूल के मेडागास्कर और ऑस्ट्रेलिया में में पाये जाने वाले इस बेऑबॉब वृक्ष की सबसे पहली पहचान है इस का उल्टा दिखना यानि इस को देखने पर आभास होता है कि मानों पेड़ की जड़े ऊपर, और तना नीचे हो।

बेऑबॉब के इस रूप के बारे में किवंदती है कि पहले यह पेड़ सीधा था परन्तु फ़लते फ़ूलते इसने दूसरे पौधों और पेड़ों को मिलने वाले हवा और सूर्य प्रकाश को रोक दिया। परमात्मा को गुस्सा आया और उन्होने इस पेड़ को जड़ से उखाड़ कर उल्टा लगा दिया, बेऑबॉब के बहुत मिन्न्तें करने पर भगवान ने इस पेड़ को एक छूट दी कि साल के ६ महीने इस पर पत्ते लग सकते हैं बाकी के समय में यह पेड़ एक ठूंठ की भाँति दिखेगा। यह तो एक किवंदती है परन्तु आज भी इस पेड़ पर पत्ते साल में सिर्फ़ ६ महीने के लिये ही लगते हैं, बाकी समय में यह एक दम सूखा दिखता है।

इस पेड़ की दूसरी पहचान यह है कि इस का तना ४०/५० या १०० से १२० फ़ुट तक चौड़ा होता है। कहीं कहीं तो १८० फ़ूट तक पाया गया है। और यहीं से इस पेड़ का दूसरा आश्चर्य शुरू होता है, इस पेड़ के तने में हजारों लीटर (१,२०,००० लीटर तक) शुद्ध पानी भरा रहता है। बेऑबॉब का यह पानी जब वर्षा ना होती हो तब पीने के काम आता है। अफ़्रीका के कई कबीलों में इस पेड़ के नीचे पंचायतों की बैठकें होती है, विवादों का निबटारा किया जाता है और आदिवासी लोग इस पेड़ के नीचे अपना गुनाह भी कबूल करते है।

बेऑबॉबकी उम्र ६००० वर्ष तक (कार्बन डेटिंग पद्दती से प्रमाणित) पाई गयी गई है। Island off Verde में दो पेड़ आज भी मौजूद हैं जिनकी उम्र ५००० से भी ज्यादा मानी जाती है।

हमने कहानियों में कल्पवृक्ष के बारे में पढ़ा सुना है और वर्तमान में नीम इसका श्रेष्ठ उदाहरण है जिसका प्रत्येक अंग का अपना उपयोग है इसी तरह बेऑबॉब के इतने सारे उपयोग है कि एक बड़ी सी किताब लिखी जा सकती है, यहाँ प्रस्तुत है उनके उपयोग।

तने के कुछ उपयोग के बारे में तो मैने आपको उपर बताया ही है कि इस के तने में घर, दुकान, अस्पताल और अस्थायी जैल का काम भी लिया जाता है। अफ़्रीका के डर्बी शहर से १०० कि, मी दूर आज भी एक ऐसा पेड़ मौजूद है जिसको जेल के तौर पर काम में लिया जाता है।

बेऑबॉब की छाल में ४०% तक नमी होती है और इस वजह से यह जलाने के काम नहीं आती परन्तु तने की भीतरी छाल फ़ाईबर जैसी होती है, से कागज, कपड़े, रस्सी, मछली पकड़ने के जाल, धागे, बास्केट और कंबल जैसी हजारों वस्तुएं बनाई जाती है। बेऑबॉब के पेड़ पर पहली बार फ़ूल ( १२ सेमी तक लम्बे) पेड़ की २० वर्ष की आयु में अप्रेल मई में लगते है जो कि अल्पायु के लिये ही होते हैं और रात्रि में ही खिलते हैं। । फ़ूलों का रंग सफ़ेद एवं बडे़ बड़े होते हैं। पराग कणों से भी गोन्द बनाया जाता है। फ़ल ककड़ी ( खीरा) की तरह और गूदेदार होते हैं और १ फ़ूट तक लंबे होते हैं( कई बार गोल भी होते हैं , जो बन्दरों को बहुत प्रिय होते है, और इसी वजह से इसे द मंकी ब्रेड ट्री भी कहा जाता है। फ़लों से कई तरह की दवाईयाँ बनती है जो Filarae, रक्तक्षीणता, अरक्तता , Rachities, Dysentry,दमा,Rhumatism, (अतिसार) जैसे रोगों को दूर करने के काम आती है। इस फ़ल को सुखाने के बाद पाऊडर बनाया जाता है और इसे पानी में मिलाने से बहुत ही नारियल के पानी सा परन्तु स्वाद में नींबू पानी सा खट्टा स्वास्थयवर्धक ( एक संतरे से ६ गुना ज्यादा विटामिन “c”(सी) ) पेय बनता है। छोटे फ़लों की कई तरह की गेंद बनाई जाती है।

एक फ़ल में तकरीबन ३० बीज होते है। बीजों से भी कई तरह की दवाईयाँ, गोन्द, कच्चा तेल और तेल साबुन बनाने के काम में प्रयोग किया जाता है।

केल्शियम से भरपूर पत्तों से सब्जी बनती है, उबाल कर डिटर्जेंट पाऊडर की तरह काम में लिया जाता है, पेट में गैस होने पर प्रयोग की जाने वाली दवाई बनती है।

भारत में यह पेड़ किस तरह पहुँचे कोई प्रमाण नही मिलते हैं। सूरत शहर के कतारगाम में अनाथआश्रम के सामने दो पेड़ और सरथाणा चुंगी नाका के सामने बने चिड़ियाघर में भालू के पिंजरे के पास एक पेड़ हजारों वर्षों से अड्डा जमाये हुए हैं। अगर कभी सूरत जाना हो तो यह पेड़ अवश्य देखना चाहिये। गुजराती में इसे ” गोरख आंबलीગોરખ આંબલી (ईमली)” कहा जाता है।

एक अफ़सोस की बात और लिख दूँ कि सुरतमहानगर पालिका को इस पेड़ के बारे में कोई जानकारी नहीं है और यह पेड इतना महत्वपूर्ण है फ़िर भी सुरत के इस बओबॉब पेड़ को बिल्कुल भी महत्व नहीं मिल रहा है।

'अन्तरजाल के विभिन्न स्त्रोतों से साभार'

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