स्वामी दयानंद सरस्वती
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स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म १८२४ में बंबई की मोरवी रियासत के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।[१] इनका बचपन का नाम मूलशंकर था। गृह त्याग के बाद मथुरा में स्वामी विरजानंद के शिष्य बने। १८६३ में शिक्षा प्राप्त कर गुरु की आज्ञा से धर्म सुधार हेतु 'पाखण्ड खण्डिनी पताका' फहराई। स्वामी दयानंद सरस्वती ने ७ अप्रैल १८७५ को बंबई में आर्य समाज की स्थापना की थी।[२] इन्होंने वेदों की ओर लौटो तथा भारत भारतीयों के लिए नारे दिए। स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश (हिंदी भाषा में) तथा वेदभाष्यों की रचना की। इन्होंने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुन: हिंदू बनाने के लिए शुद्धि आंदोलन चलाया। १८८३ में स्वामी जी का देहांत हो गया।
स्वामी दयानंद के अनुयायियों लाला हंसराज ने १८८६ में लाहौर में 'दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना की तथा स्वामी श्रध्दानंद ने १९०१ में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल विद्यालय की स्थापना की।
[संपादित करें] संदर्भ
- ↑ दयानंद सरस्वती (अंग्रेज़ी) (एचटीएम)। रिफ़रेंसइंडियानेटज़ोन.कॉम। अभिगमन तिथि: 20 सितंबर, 2007।
- ↑ फ्रीडम फ़ाइटर्स (अंग्रेज़ी) (एचटीएम)। ऐसपायरिंगइंडिया.ऑर्ग। अभिगमन तिथि: 20 सितंबर, 2007।