ध्यान

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जिस वस्तु को चित मे बांधा जाता है उस मे इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहां से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है। चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि भगवान का ध्यान करते थे। ध्यान की अवस्था में ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को तथा स्वयं को भी भूल जाता है। ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है।

बोलचाल की भाषा में प्रयोग के अनुसार ध्यान के अलग अलग अर्थ होते हैं जैसे किः

  • ध्यान रहे कि हमसे किसी का अहित न हो।
  • मेरी बातों की ओर ध्यान दीजिये।
  • हमारा ध्यान संगीत की विशिष्टता की ओर गया।
  • ध्यान से देखने पर पता चला कि वहाँ पर कुछ और भी है।