विनय पत्रिका
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विनयपत्रिका तुलसीदास रचित एक ग्रंथ है। यह ब्रज भाशा में रचित है .
तुलसीदासजी अब असीघाट पर रहने लगे। रातको एक दिन कलियुग मूर्तरूप धारणकर उनके पास आया और उन्हें त्रास देने लगा। गोस्वामीजीने हनुमान्जीका ध्यान किया। हुनुमान्जीने उन्हें विनय के पद रचनेको कहा; इसपर गोस्वामीजीने विनय-पत्रिका लिखी और भगवान्के चरणोंमें उसे समर्पित कर दी। श्रीरामने उसपर अपने हस्ताक्षर कर दिये और तुलसीदासजीको निर्भय कर दिया। तुलसीदास
[edit] विनयपत्रिका
[edit] TOC विनयपत्रिका १-९ विनयपत्रिका १०-१९ विनयपत्रिका २०-२९ विनयपत्रिका ३०-३९ विनयपत्रिका ४०-४९ विनयपत्रिका ५०-५९ विनयपत्रिका ६०-६९ विनयपत्रिका ७०-७९ विनयपत्रिका ८०-८९ विनयपत्रिका ९०-९९ विनयपत्रिका १००-१०९ विनयपत्रिका ११०-११९ विनयपत्रिका १२०-१२९ विनयपत्रिका १३०-१३९ विनयपत्रिका १४०-१४९ विनयपत्रिका १५०-१५९ विनयपत्रिका १६०-१६९ विनयपत्रिका १७०-१७९ विनयपत्रिका १८०-१८९ विनयपत्रिका १९०-१९९ विनयपत्रिका २००-२०९ विनयपत्रिका २१०-२१९ विनयपत्रिका २२०-२२९ विनयपत्रिका २३०-२३९ विनयपत्रिका २४०-२४९ विनयपत्रिका २५०-२५९ विनयपत्रिका २६०-२६९ विनयपत्रिका २७०-२७९ ॥ राम ॥
विषयानुक्रमणिका विषय पदाङ्क विषय पदाङ्क श्री गणेश\-स्तुति
१ श्री राम स्तुति २ श्री राम नाम वन्दना ३-१४ श्री राम आरती १५-१६ हरिशङ्करी\-पद १७\-२० श्रीराम\-स्तुति २१ श्रीरंग\-स्तुति २२ श्रीनर\-नारायण\-स्तुति २३\-२४ श्रीविन्दुमाधव\-स्तुति २५\-३६ श्री राम वन्दना ३७\-३८ श्रीराम\-नाम\-जप ३९ विनयावली ४० \-\-\- \-\-\- श्रीसीता\-स्तुति ४१\-४२ \-\-\- \-\-\- राग\-सूचौ आसावरी ४३\-४५ सूर्य\-स्तुति ४६ शिव\-स्तुति ४७\-४८ देवी\-स्तुति ४९ गङ्गा\-स्तुति ५०\-५६ यमुना\-स्तुति ५७\-५९ काशी\-स्तुति ६० चित्रकूट\-स्तुति ६१\-६३ हनुमत\-स्तुति ६४ लक्ष्मण\-स्तुति ६५\-७० भरत\-स्तुति ७१\-२७९ शत्रुघ्न\-स्तुति ६२,१८३\-१८८ बिहाग १०७\-१३४ कल्याण २०८\-२११,२१४\-२७९ भैरव २२,६५\-७३ कान्हरा २४,२०४\-२०७ भैरवी १९८\-२०३ केदारा ४१\-४४,२१२\-२१३ मलार १६१ गौरी ३१,३६,४५,१८९\-१९७ मारु १५ जैतश्री ६३,८३\-८४ रामकली ६\-९,१६\-२०,४६\-६१,१०६ टोड़ी
७८\-८२ ललित ७५\-७७ दण्डक ३७ विभास ७४ धनाश्री ४\-५,१\.१२,२५\-२९, सारंग ३०,१५५\-१५७ ३८\-४०,८५\-१०५ सूहो बिलावल १३५\-१३६ नट १५८\-१६० सोरठ १६२\-१७८ बसन्त १३\-१४,२३,६४ \-\-\- \-\-\- बिलावल १\-३,२१,३२\-३५,१०७, \-\-\- \-\-\- १३४,१३७\-१५४,१७९\-१८२ \-\-\- \-\-\-
[edit] ॥ राम ॥ ॥ श्री हनुमते नमः ॥
दो० श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौ पवन\-कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस बिकार ॥ चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि\-पुत्र पवनसुत नामा ॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥ संकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥ बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥ सूक्ष्म रुप धरि सियहि दिखावा । बिकट रुप धरि लंक जरावा ॥ भीम रुप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥ लाय संजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥ रघुपति कीन्ही बहुत बडाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥ जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥ तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥ जुग सहस्त्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहु को डरना ॥ आपन तेज सम्हारो आपै । तीनो लोक हाँक ते काँपै ॥ भूत पिसाच निकट नहि आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥ नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ संकट तें हनुमान छुडावैं । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥ और मनोरथ जो कोई लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ॥ चारो जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ साधु संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥ राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥ तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि\-भक्त कहाई ॥ और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥ संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ जै जै जै हनुमान गोसाई । कृपा करहु गुरुदेव की नाई ॥ जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महासुख होई ॥ जो यह पढै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥ दो० पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप । राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
॥ इति ॥ सियावर रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय ॥ उमापति महादेव की जय । बोलो भाइ सब संतन्ह की जय ॥
॥ श्री सीतारामाभ्यां नमः ॥ विनय\-पत्रिका राग बिलावल श्रीगणेश\-स्तुति