ब्रह्मांड
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ब्रह्माण्ड शब्द का अर्थ खगोल से लिया जाता है,एक स्थान पर खडे होकर अगर आकाश को चारों तरफ़ घूम कर देखा जाये तो गोल आकॄति दिखाई देती है,और उस गोल आकाशीय क्षेत्र मे दिखाई देने बाले तारे,ग्रह आदि ब्रह्माण्ड कहलाते है,इन तारों और ग्रहों को मानव समुदाय ने अपने अपने अनुसार सोचों और उनकी प्रकॄति के अनुसार ही नाम दिये हैं,और मान लिया है कि इन तारों और ग्रहों का रूप ही संसार की उत्पत्ति और विनाश का कारक है,भारतवर्ष के ॠषियों ने इस बात का पता आज से २२०० साल पहले ही लगा लिया था,पुरानी खोजों मे ॠषि बाराहमिहिर ने २७ नक्षत्र,और ७ ग्रहों,तथा ध्रुव तारे को वेधने के लिये एक जलाशय मे मेरु स्तम्भ का निर्माण करवाया था,इसकी चर्चा भागवत पुराण मे है,स्तम्भ मे ७ ग्रहों के लिये सात मंजिलें,और २७ नक्षत्रों के लिये २७ रोशनदानों का निर्माण काले पत्थरों से करवाया था,इसके चारों तरफ़ २७ वेधशालायें मन्दिर स्वरूपों मे बनी थीं,कुतुब्द्दीन ने इन वेधशालाओं को तुडवाकर मस्जिद बनवा दी थी,और भारत मे अन्ग्रेजी शासकों ने इस स्तम्भ के ऊपरी भाग को तुडवा दिया था,परन्तु यह अब भी ७६ फ़ुट शेष बचा हुआ है,इसी का नाम कुतुबमीनार है,जो आज भी दिल्ली के महरोली क्षेत्र मे खडी है. ब्रहमाण्ड एक नही है,पुराणों के अनुसार असंख्य ब्रह्माण्ड हैं,और असंख्य सूर्य हैं,जो महासूर्य की परिक्रमा किया करते हैं,इन सबका संचालन परब्रह्म करता है.पॄथ्वी तो इस ब्रह्माण्ड का एक सदस्य मात्र है,मनुष्य की गिनती भी ब्रह्माण्ड मे पुराणों के अनुसार की जाती है,जिस प्रकार से सात तल इस ब्रहमाण्ड मे स्थित हैं,उसी प्रकार से मनुष्य के अन्दर भी सात तल सात चक्रों के रूप मे स्थित हैं,इस बात का पता वे लोग ही जानते हैं,जो ध्यान समाधि के द्वारा इन तलों मे घूमा करते हैं. सूर्य,चन्द्र,मंगल,बुध,बॄहस्पति,शुक्र,शनिश्चर,महासूर्य तारे नक्षत्र आदि सभी एक माला के मनके की तरह से हैं, और समानुभूति की एक कडी के सदॄश्य हैं,ब्रहमाण्ड की कोई इकाई स्वतन्त्र नही है,ब्रहमाण्ड की अति सूक्षम हलचल का प्रभाव भी पॄथ्वी पर पडता है.सूर्य चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम देखते ही है,चन्द्रमा का प्रभाव हम समुद्र मे देखते हैं,जो ज्वार-भाटा के रूप मे दिखाई देता है,यह प्रभाव मानव मष्तिस्क पर भी पडता है,क्योंकि मानव शरीर मे भी पानी की मात्रा सबसे अधिक है.