भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानि आई आई टी (इंडियन इंस्टीट्यूट्स आफ़ टेक्नालजी) भारत के ७ स्वायत्त तकनीकी शिक्षा संस्थान हैं। ये संस्थान भारत सरकार के द्वारा स्थापित किये गये "राष्ट्रीय महत्व के संस्थान" हैं। ईसवी सन २००६ के अनुमान के अनुसार सभी आई आई टी में मिलाकर १७,००० पूर्व-स्नातक तथा १३,००० स्नातक छात्र हैं। आई आई टी के वर्तमान तथा पूर्व छात्रों को आईआईटियन कहते हैं।
भारत में सात आई आई टी हैं :
- आई आई टी दिल्ली, दिल्ली
- आई आई टी मुंबई, महाराष्ट्र
- आई आई टी चेन्नई, तमिलनाडु
- आई आई टी कानपुर, उत्तर प्रदेश
- आई आई टी खड़गपुर, पश्चिम बंगाल
- आई आई टी रुड़की, उत्तरांचल
- आई आई टी गुवाहाटी, असम
[संपादित करें] इतिहास
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना का इतिहास ईसवी सन १९४६ को जाता है जब जोगेंद्र सिंह नें भारत में उच्च शिक्षा के संस्थानों की स्थापना के लिए एक समिति का गठन किया। नलिनी रंजन सरकार की अध्यक्षता में गठित समिति नें भारत भर में ऐसे संस्थानों के गठन की सिफ़ारिश की। इन सिफ़ारिशों को ध्यान में रखते हुए पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना कलकत्ता के पास स्थित खड़गपुर में १९५० में हुई। शुरुआत में यह संस्थान हिजली कारावास में स्थित था। १५ सितंबर १९५६ को भारत की संसद नें "भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान अधिनियम" को मंज़ूरी देते हुए आई आई टी को "राष्ट्रीय महत्व के संस्थान" घोषित कर दिया।
इसी तर्ज़ पर अन्य आई आई टी की स्थापना बंबई (१९५८), मद्रास (१९५९), कानपुर (१९५९), तथा नई दिल्ली (१९६१) में हुई। असम में छात्र आंदोलन के चलते प्रधानमंत्री राजीव गान्धी नें असम में भी एक आई आई टी की स्थापना का वचन दिया जिसके नतीजतन १९९४ में गुवाहाटी में आई आई टी की स्थापना हुई। सन २००१ में रुड़की स्थित रुड़की विश्वविद्यालय को भी आई आई टी का दर्जा दिया गया।
[संपादित करें] आई आई टी की महत्ता
आई आई टी से शिक्षित अभियंताओं तथा शोधार्थियों का डंका दुनिया भर में बजता है। इसीलिये भारत में इंजीनियरिंग की पढाई करने का इच्छुक प्रत्येक विद्यार्थी इन सम्स्थानों में प्रवेश पाने की महत्वाकांक्षा रखता है। इन संस्थानों में प्रवेश एक संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE) के आधार पर होता है। यह परीक्षा बहुत कठिन मानी जाती है और इसकी तैयारी कराने के लिये देश भर में हजारों 'कोचिंग क्लासेस्' चलाये जा रहे हैं। आई आई टी की इतनी महता के बावजूद इस पर आरोप लगाया जाता है कि भारत की गरीब जनता के पैसे से इसमें पढकर निकलने वाले पैसा कमाने के लालच में देश छोडकर यूएसए या किसी अन्य देश में चले जाते हैं; जिसके कारण इससे भारत को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया है।