दमोह जिला

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दमोह

दमोह का महत्व 14वीं शताब्दी से रहा है जब खिलजी ने क्षेत्रीय प्रशासनिक केंद्र को चंदेरी के बटियागढ़ से दमोवा (दमोह) स्थानातंरित किया। दमोह मराठा गर्वनर की सीट थी। ब्रिटिश काल के बाद यह मध्य प्रांत का भाग हो गया. तथा 1867 में इसे म्यूसिपालिटी बना दिया गया था। यहां आयल मिल, हैण्डलूम तथा धातु के बर्तन, बीडी-सिगरेट, सीमेंट तथा सोने-चांदी के जेवर आदि बनाए जाते हैं। दमोह के आसपास बड़ी संख्या में पान के बाग भी है। यहां से इसका निर्यात भी होता है। यहां पर नागपंचमी पर वार्षिक मेला आयोजित होता है तथा जनवरी में जटाशंकर मेले का भी आयोजन होता है। यहां पर पशु बाजार लगता है तथा कई छोटे उद्योग भी है। साथ ही हथकरघा और मिट्टी के बर्तन भी बनाए जाते हैं। दमोह जिला 2816 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में उत्तर से दक्षिण तक फैला है। साथ ही चारों ओर पहाड़ियों तथा जंगल से घिरा हुआ है। जिले की अधिकांश भूमि उपजाऊ है। जिले में मु्ख्यतः दो नदियां सुनार और बैरमा बहती हैं। जिले में मुख्यतः नदियों से ही सिंचाई की जाती हैं। दमोह को 1861 में पूर्णताः जिला बनाया गया।

समुद्र तल से ऊंचाईः

तापमान (°C) :

उत्कृष्ट मौसमः



प्रमुख उद्योगः

संग्रहालयः

शैक्षणिक संस्थानः


Excursions:

दर्शनीय स्थलः

जटाशंकर
 नोहलेश्वर मंदिर (नोहटा)  
 < गिरी दर्शन
सिंगौरगढ़ का किला 
 निदान कुंड
 नजारा
नरसिंहगढ़  


होटलः


ऐतिहासिक तथ्यः

अंग्रेजी हुकूमत

1861: मध्य प्रांत का गठन हुआ। 1861: दमोह पूर्ण जिला बना। 1867: 1867: lang="HI" दमोह जिले की जनसंख्या 2,62,600 1867: जबलपुर और इलाहाबाद के बीच रेलवे लाइन पूरी हुई। 1896-1897: दमोह जिले में सूखा और अकाल पड़ा। . 1898: 1899 दमोह-कटनी को रेल मार्ग से जोड़ा गया। 1900: जिले में आंशिक अकाल पड़ा। 1923: सेठ गोविंद को चार हिन्दी नाटक लिखने पर जेल जाना पड़ा। 1933: महात्मा गांधी ने दमोह की यात्रा की। 1946: 18 जुलाई को सागर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। 1947: देश आजाद हुआ। मध्य प्रांत की जगह मध्य प्रदेश का गठन हुआ। . 1960: 1991: दमोह जिले की जनसंख्या 8,98,125 हो गई। 2001: दमोह जिले की जनसंख्या 10,81,909 हो गई।