मस्तक पर लिखी गयी विधाता द्वारा अक्षर पंक्ति को पढने की सामर्थ्य

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  • विधात्रा लिखिता याअसौ ललाटेअक्षरमालिका,दैवज्ञस्तां पठेद्वयक्तं होरा निर्मलचक्षुषा ॥सारावली
  • जीवमात्र के माथे पर ब्रहमाजी जो अक्षर अंकित कर देते हैं,उनको होराशास्त्र को जानने वाला स्वच्छ द्रिष्टि वाला दैवज्ञ स्पष्ट रूप से पढ लेता है.
  • सारांश:-भदावरी ज्योतिष संसार में उत्पन्न होने वाले जलचर,थलचर,और नभचर नाना प्रकार के जीव,जिनमे जड,चेतन,जीव हैं,उनके इस संसार मे जन्म लेने के समय ब्रह्माजी अपनी लेखनी से उनके जीवन में होने सुख,दुख,पाप,पुण्य सब कुछ लिख कर पूरित करते हैं,माथे की चन्द लकीरें मनुष्य के बारे में सब कुछ कह देती हैं,इनको पढने के लिये भी उसी प्रकार के ज्ञाता की जरूरत पडती है जैसा कि ब्रहमाजी का स्वभाव है.ब्रहमाजी कोई मनुष्य नही हैं,ब्रहमाजी मे ’जी’ लगाने का अभिप्राय केवल हिन्दु संस्कॄति में आदर देना ही उद्देश्य है,ब्रह्म तो सकल ब्रह्माण्ड है,इस सकल ब्रह्माण्ड मे हमारी पॄथ्वी भी एक हिस्सा मात्र है,और इस पॄथ्वी पर हम केवल अणु मात्र ही हैं,इन अणुओं की संरचना में उस ब्रहमाण्ड की ही कल्पना है,महासूर्य के चारों ओर जो भी घूम रहा है,और घूमने मे जो भी परिवर्तन हो रहा है,वह केवल फ़ैलने और सिमटने का खेल मात्र ही है,जैसे फ़ैला है वैसे ही सिमट जाता है,पैदा होने के समय ब्रहमाण्ड की स्थिति के अनुसार जीव के बारे मे कल्पना की जाती है,पांचों भूतों का तौल माप होता है,इन पांच भूतों में मिट्टी के पुतले में पानी मिलाकर,गर्मी देकर,हवा का प्रवाह लगातार जारी करने के बाद आकाश नामक जीव का प्रवेश करवाया जाता है,और जब पांचों भूत अपने आप काम करना चालू कर देते हैं तो इस पिण्ड का वर्गीकरण कर दिया जाता है,गर्मी और मिट्टी के अनुसार जीव को कितने समय तक इस पिण्ड मे निवास करना है,का समय अंकित कर दिया जाता है,इस पिण्ड को जब स्वचालित किया जाता है,तो इसके रूप और बनावट के अनुसार पिण्ड के आस पास के जीवों में पिण्ड के प्रति लोभ,मोह,माया,मत्सर,राग,द्वेष,सब कुछ पहले से ही भर दिया जाता है,और वे सब इस पिण्ड को अपने अनुसार बदलने,अपने अनुसार अपनी अपनी इच्छानुसार चलाने की कोशिश करने लगते हैं,